सोमवार, 10 फ़रवरी 2014

एक छुपी कहानी

हर बिना धुले कपडे की एक कहानी होती हें !
सिमटी हुई सी,
कभी आस्तीन कभी जेब कभी महक में छुपी !
हर बिना धुले कपडे की एक कहानी होती हें !
सिमटी हुई सी,

कभी आस्तीन कभी जेब कभी महक में छुपी !
झांकते है कुछ लम्हे कुछ यादे,
उन सिलवटो और निशानों से !
और सुनाते हें एक कहानी उस सफर की,
जो उसके धुलने के साथ ही  भुला दिया जाएगा !
हर बिना धुले कपडे की एक कहानी होती हें !!
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राजू का मिटटी से सना स्कूल का नीला शर्ट
बता रहा हें कि आज उसने खेला है फुटबाल
क्लास छोड़ कर !
कुछ भीगी सी आस्तीने गवाह हें
कि पसीना फिर उसने बाज़ुओ से ही पौछा है !
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पड़ोस कि आंटी की
लखनवी डिजाईनर साड़ी पर लगे सब्जी के निशान
बता रहे है भोज में आये मेहमानों कि भूख को !
रोज़ मोहल्ले का डान बनकर घूमने वाले
महेश कि शर्त फटी हुई हें आज,
वो पिट कर लौट रहा है या हवालात से !
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बड़े भैया के एक बाजू से
महक रहा है जनाना इत्र,
उस लड़की का
जिसके हाथ थाम जनाब सिनेमा देख आये हें !
पिताजी का सिलवटो और पसीने से भरा शर्ट
हिसाब देता हें उन पैसो का,
जो हम बेफ़िक्री से उड़ाते हें !
माँ की साड़ी में गंध और कालिख हें कोयले की,
लगता हें गैस फिर खत्म हो गई है !
आज फिर रोटी खानी होगी चूल्हे की !
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मेरे दोस्त के टी शर्ट में बू हें धुए की सी,
शायद कही गली में छुप कर वो सिगेरेट सुलगाता होगा !
दादाजी कि उस पुरानी धोती से एक अजीब गंध आती हें
शायद तजुर्बे कि महक होगी !
हर बिना धुले कपडे की एक कहानी होती हें!!
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चौराहे पर बैठे उस बूढ़े भिखारी का फटा कुर्ता
दशको से नहीं धुला,
उसमे छुपी हें अनगिनत सच्चाइयाँ
और लाचारी भरे लम्हे कई,
पर मोटे उपन्यासों को पढ़ने का वक्त किसी के पास नहीं !
पहाड़ के उस पुराने मंदिर में
जहा अब कोई नहीं जाता
एक ध्वजा लहराती हें,
कहती हें कहानी उन दिनों कि
जब इंसा इतना नास्तिक न था !
हर बिना धुले कपडे की एक कहानी होती हें!!
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अक्सर ये कहानिया वक्त बा वक्त धो दी जाती हें
एक नई इबारत लिखने को,
पर कुछ कहानियों को संजोया जाता हें सुनाने को !
जैसे कि मेरी अलमारी बड़े जतन से रखा वो रुमाल
जो फिरंगी मेम का चुराया था,
मानो महक आती हें उसमे परदेस की !
हाँ! और जैसे वो ‘मफलर’
जो भैया को उनकी सहेली ने दिया था शायद,
छूने भी नहीं देता किसी को
हर बिना धुले कपडे की एक कहानी होती हें
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लेकिन अलमारी में बिलकुल पीछे,
एक फौजी वर्दी टंगी हें चचाजान की !
घर के बड़े कभी कभी अकेले में
उसे देख कर रो लिया करते हें !
उस वर्दी पर आखिरी कहानी के शायद कुछ ज़ख्म बचे है
अब उसकी सिलवटो में कोई नई कहानी नहीं भरता
क्योंकि उन हरी स्लेटी सतहो लिखने वाला
लंबी छुट्टियों पर गया हें !!
हर बिना धुले कपडे की एक कहानी होती हें