बुधवार, 24 जुलाई 2013

आइये जाने #6 ऊँचाई

                                  ऊँचाई     
                
ऊँचे पहाड़ पर, 
पेड़ नहीं लगते, 
पौधे नहीं उगते,
न घास ही जमती है।
जमती है सिर्फ बर्फ, 
जो, कफ़न की तरह सफ़ेद और, 
मौत की तरह ठंडी होती है। 
खेलती, खिलखिलाती नदी, 
जिसका रूप धारण कर, 
अपने भाग्य पर बूंद-बूंद रोती है। 

ऐसी ऊँचाई,
जिसका परस
पानी को पत्थर कर दे,
ऐसी ऊँचाई
जिसका दरस हीन भाव भर दे,
अभिनंदन की अधिकारी है,
आरोहियों के लिये आमंत्रण है,
उस पर झंडे गाड़े जा सकते हैं,
किन्तु कोई गौरैया, 
वहाँ नीड़ नहीं बना सकती, 
ना कोई थका-मांदा बटोही, 
उसकी छाँव में पलभर पलक ही झपका सकता है। 

सच्चाई यह है कि
केवल ऊँचाई ही काफ़ी नहीं होती,
सबसे अलग-थलग,
परिवेश से पृथक,
अपनों से कटा-बँटा,
शून्य में अकेला खड़ा होना,
पहाड़ की महानता नहीं,
मजबूरी है।
ऊँचाई और गहराई में
आकाश-पाताल की दूरी है।
जो जितना ऊँचा, 
उतना एकाकी होता है, 
हर भार को स्वयं ढोता है, 
चेहरे पर मुस्कानें चिपका, 
मन ही मन रोता है। 

ज़रूरी यह है कि
ऊँचाई के साथ विस्तार भी हो,
जिससे मनुष्य,
ठूँठ सा खड़ा न रहे,
औरों से घुले-मिले,
किसी को साथ ले,
किसी के संग चले।
भीड़ में खो जाना, 
यादों में डूब जाना, 
स्वयं को भूल जाना, 
अस्तित्व को अर्थ, 
जीवन को सुगंध देता है। 

धरती को बौनों की नहीं,
ऊँचे कद के इंसानों की जरूरत है।
इतने ऊँचे कि आसमान छू लें,
नये नक्षत्रों में प्रतिभा की बीज बो लें,
किन्तु इतने ऊँचे भी नहीं, 
कि पाँव तले दूब ही न जमे, 
कोई काँटा न चुभे, 
कोई कली न खिले। 

न वसंत हो, न पतझड़,
हो सिर्फ ऊँचाई का अंधड़,
मात्र अकेलेपन का सन्नाटा।
मेरे प्रभु! 
मुझे इतनी ऊँचाई कभी मत देना, 
ग़ैरों को गले न लगा सकूँ, 
इतनी रुखाई कभी मत देना।

सोमवार, 22 जुलाई 2013

गुरु


गुरु –कोई भी हो सकता है ! सृष्टि के कण कण को ,हर जीव को भगवान् ने बिलकुल अलग और ख़ास बनाया है –सबमें कुछ ख़ास है -कोई किसी के जैसा नही ! इसीलिए जिसे आप बिलकुल अनुपयोगी या मूर्ख प्राणी समझते हैं क्या पता वही आपको आपकी ज़िन्दगी का सबसे बड़ा पाठ पढ़ा जाए !! इसीलिए व्यर्थ अहंकार में रहने की बजाय सबको सुनें,समझें,सीखें और इसे स्वीकार करें बिना किसी हिचकिचाहट के चाहे वह व्यक्ति या चीज़ आपको पसंद न हो पर ये तो आपको मानना ही चाहिए कि उसने आपको कुछ सिखाया और शुक्रगुज़ार भी होना पड़ेगा !!इसीलिए कोई एक गुरु नही ; भगवान् की ही नही बल्कि इंसान की कृतियों  को भी अपना गुरु बना सकते हैं –जो आपको सिखा दे वो गुरु ,हाँ अब इसमें बुरे कामों के लिए भी गुरु मिलते हैं इस दुनिया में -अब आप पर निर्भर करता है कि आपको आपके अन्य अच्छे ‘गुरुओं’ की सीख अपनानाकर अपना विवेक और ह्रदय को साथ लेकर चलना है !! सीखने की न तो कोई उम्र होती है न ही वक़्त होता है –इस वक़्त कोई बड़ा उदाहरण देने की बजाय -अक्सर माँ घर पर कहा करती हैं कि काम कोई भी बड़ा छोटा नही होता इसलिए जब कोई अच्छे से सफाई करता है,झाडू लगाता है तो भी वो काबिले तारीफ़ होता है कि कैसे उसने अपने हिस्से का काम परफेक्शन के साथ किया ! तो उस वक़्त इस मामले में वही गुरु !
हमारे जन्म लेने के साथ ही हमारे जीवन को हमारे माता –पिता ही आकार  देना शुरू करते हैं और हम आज जैसे भी हैं  वो उनकी वजह से हैं ,और अगर कभी कोई गलत रास्ते पर जाता है तो उसे सही करने की हर संभव कोशिश भी की जाती है पर चूँकि  संतान पर दूसरों का फर्क भी पड़ता है ,उसे चुनना है कि वो माता पिता जो कभी उसके लिए बुरा नही सोच सकते –अपनी बुद्धि का प्रयोग कर अपने प्रथम गुरुओं का पथ अपनाये !
कभी कभी कला के विविध रूपों ,उसकी रचनाओं ,विचारों में भी अच्छी सीख ढूंढ सकते हैं ,प्रकृति के हर अंश में एक गुरु का तत्व छुपा है !! गुरु और शिष्य का रिश्ता सिर्फ ओहदे का या सम्मान का नही होता ,क्यूंकि कभी कभी कहते हैं न बच्चे भी बड़ों को सिखा देते हैं तब तो वही गुरु हो गये !!
वैसे तो अभी तक और आगे भी औपचारिक रूप की शिक्षा में मुझे जिन्होंने भी पढाया और पढ़ाएंगे वो सम्मानीय हैं क्यूंकि हरेक ने मुझे कुछ न कुछ सिखाया है  पर मेरे  कुछ टीचर्स की  मैं ज़िन्दगी भर आभारी रहूंगी –जिनमें से दो मेरी स्कूल में थीं और कुछ बंसल क्लासेज कोटा में ! मुझे आज भी याद है एक बार क्लास में किसी सिलसिले में जॉर्ज मैडम ने  मुझे लड़कों के बीच बिठा दिया अपने बिलकुल सामने और मैं जो ज़रा अंतर्मुखी हूँ. मन के भाव पढ़ते हुए उन्होंने मुझसे कहा अरे हम तो तुम्हे पी.एम .बनाना चाहते हैं और तुम इतने में ही डर रही हो ! रेड्डी मैडम की वजह से ही कोटा का विचार आया ,नहीं तो घर से इतना दूर जाने का कभी सोचा ही नही था और इसके बाद भी जब मैं उनसे  मिली तो उन्हें मुझपर मुझसे ज्यादा विश्वास था क्यूंकि वो मुझे बहुत अच्छे तरह से जानती थीं ! तो बंसल क्लासेज कोटा में वैसे तो वो कुछ साल मेरी ज़िन्दगी के सबसे बेहतरीन साल थे पर कुछ टीचर्स थे (Vishal joshi sir , A.K.K  sir , M.K.S sir (उनकी सादगी और उनका काम और कंपोज्ड नेचर मुझे बहुत अच्छा लगता था इसके अलावा कि फिज़िक्स मुझे इन्ही से समझ में आई  :p )जिन्होंने इस कठिन तैयारी को बड़ा ही मजेदार और सार्थक बना दिया था जिनके साथ पढने की जब जब यादें ताज़ा होती हैं वो सुखद अनुभूति लाती हैं .
गुरु पूर्णिमा की आप सभी को हार्दिक शुभकामनायें और भगवान करे आप आगे भी यूँ सीखते रहे और अपने हर गुरु के पाठों को अमल लाकर ज़िन्दगी में सफल और प्रसन्न बनें !!

                                                          ------------- स्पर्श चौधरी 

आपकी कलम से # 7 " प्यार की परिभाषा "

                                                       " प्यार की परिभाषा "


LOVE कहो या प्यार , मानो या करो इनकार
पर फिर भी कोई इसकी परिभाषा नहीं है |
प्यार को करने के लिए इजहार
कोई भाषा नहीं है ||

जिस भी रूप में , चाहे छाँव में या धूप में
सागर के किनारे या प्रेम पत्र के सहारे |

भींग कर बारिस में या खुले आसमान में
चलती बस में या बस अकेले सुनसान में ||

प्यार का इजहार लोग करते हैं ,
साथ निभाने की कसमे खाते हैं |
वैसे आज के परिवेश में देखें
तो बहुत कम लोग ही इन कसमों को निभाते हैं ||

प्यार समय के साथ नहीं बदला है,
कल भी मीरा कृष्ण की दीवानी थी |
आज भी दीवानी है पर हममे अब वो दीवानगी नहीं रही है |
मालूम है हमने बहुत कड़वी बात कही है ||

पर सच्चाई यही है बदल गयी है हमारी सोच और हम
कुछ पल की अभिलाषा बस होती है हमे
और फिर क्या प्यार हो जाता है खतम !!!
अरे भाई ! प्यार कोई अभिलाषा नहीं है !!

कितनो को रोते देखा है , तडपते देखा है ,
गुस्सा करते भडकते और बहकते देखा है
शराब के बूंदों में खुद को कैद होते देखा है
जिंदगी से हारकर अकेले रोते देखा है !!!!

प्यार तो एक वो एहसास है
जो लाता आपकी खुशियों को आपके पास है
प्यार इस ढलते हुए समाज में एक रौशनी है
एक अनमोल आशा है , प्यार कोई निराशा नहीं है !!

उम्मीद है आप प्यार को समझें और सही तरह से प्यार करें
जरुरी नहीं आज का ही दिन सब कुछ और जल्दबाजी करने का हो ,
आराम से सोचें समझें
फिर बड़े आराम से पकड़ कर हाथ , निभाने का साथ
कुछ ऐसे अंदाज में प्यार का इजहार करें !!!

सोमवार, 15 जुलाई 2013

साप्ताहिक पहेली # 6 उत्तर

पहेली 

1. Do not be disappointed male mind
    Do some work do some work

2. Lightening in the year fifty-seven, it was old sword
    Bundel bards' mouth, we had heard the story

3. You will not ever get tired,
    You will not ever stop,
    You will not ever bend,
    Take oath, take oath, take oath,

4.O gardener pluck me,
   And throw me on that path,
   On which to sacrifice their lives for their motherland,
   Go many gallants.


उत्तर 

1. नर हो न निराश करो मन को - मैथिलीशरण गुप्त

नर हो न निराश करो मन को
कुछ काम करो कुछ काम करो


2.खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी - सुभद्रा कुमारी चौहान

चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,


3.अग्निपथ - हरिवंश राय बच्चन

तू न थकेगा कभी,
तू न रुकेगा कभी,
तू न मुड़ेगा कभी,
कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ,


4.पुष्प की अभिलाषा - माखनलाल चतुर्वेदी

मुझे तोड़ लेना वनमाली!
उस पथ पर देना तुम फेंक,
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
जिस पर जावें वीर अनेक


इस सप्ताह सही उत्तर दिया है :

  1. जयंत पाटिल
  2. Ajay Kumar
  3. Dheerendra Rathor

शुक्रवार, 12 जुलाई 2013

साप्ताहिक पहेली # 6

नीचे प्रसिद्ध कविताओं की कुछ पंक्तियों के अंग्रेजी अनुवाद (English Translation)(जो थोड़े अटपटे हैं ) दिए गए  हैं  | तो पहचानिए इन कविताओं और उनके रचयिता को |


1. Do not be disappointed male mind
    Do some work do some work

2. Lightening in the year fifty-seven, it was old sword
    Bundel bards' mouth, we had heard the story

3. You will not ever get tired,
    You will not ever stop,
    You will not ever bend,
    Take oath, take oath, take oath,

4.O gardener pluck me,
   And throw me on that path,
   On which to sacrifice their lives for their motherland,
   Go many gallants.

उत्तर iitbvaani1@gmail.com पर भेजें (Comment में उत्तर Post न करें )
हिंदी में type करने के नीचे दिए हुए links का प्रयोग करें
http://www.google.co.in/inputtools/cloud/try/

शनिवार, 6 जुलाई 2013

घुमक्कड़ी : मध्य प्रदेश (१) - मांडू

मध्य प्रदेश के मालवा क्षत्र में आज से कुछ सौ साल पहले बसा था एक खूबसूरत शहर। जिसे अक्सर अलग अलग नामो से पहचाना गया, जिसपर राज भोज से लेकर मुगलों तक अनेक राजाओं ने राज किया, जहाँ  बाज बहादुर और रूपमती के मुहब्बत की और जहां ताज महल बनाने का ख़याल पहली बार पनपा । मुहब्बत का शहर, खुशी का शहर : मांडू। 


 


शहरी भीड़ भाड़ से बेहद दूर, ना इमारते, न शोर। न पर्यटक स्थलों सा दिखावा ही।  इतिहास मानो हर और बिखरा पड़ा है। 72 किलोमीटर परिधि का किला और तीन हज़ार से ज्यादा महल और अवशेष। जहां कभी नौ लाख लोग रहा करते थे अब वहाँ अब बस उनकी कहानियां गूंजती है। 

                       

महल, इमारते इतनी अद्भुत, ऐसी कारीगरी, ऐसी तरकीबें दाँतों तले अंगुली दबा लें।   कोई दो  दिन में महल खडा कर गया, तो किसी ने पंद्रह सौ रानियों के लिए सात मंजिला हरम बना दिया । रूपमती और    बाज बहादुर के संगीत महल में आज भी वही स्वर लहरियां सुनाई देती है। हमारे वहाँ पहुँचने पर नंगे पाँव और बेहद लम्बी बांसुरी लिए एक ग्रामीण न जाने कहाँ से आ गया। धुन बजने लगी और तारीखें उलटी दौड़ पडी। इतिहास फिर जी उठा । 

                         

बारिश के मौसम में नज़ारा में अलग ही रूमानियत घुल जाती  है। हवा पर सवार ठंडी बुँदे, बादलों के बीच लुक्का छुपी और हरे मैदानों, झीलों का नज़ारा। खामोशीयाँ भी मानो गीत सुनाते है यहाँ। मन करता है यहीं बस जाने का ... पर क्या करें सफ़र चलता रहा, ज़िन्दगी रुकी नहीं ।



                                                          

सोमवार, 1 जुलाई 2013

साप्ताहिक पहेली # 5 उत्तर

पहेली


  1. डरकगजतह
  2. हसहतक
  3. दगचछह
  4. पहलसतमलकरफरवशवसकर
  5. कछमठहजय 

उत्तर


1  डर के आगे जीत है 
2  आह से आहा तक 
3  दाग अच्छे है 
4  पहले इस्तेमाल करें फिर विश्वास करें
5  कुछ मीठा हो जाये 

इस सप्ताह सही उत्तर दिया है :

1.Nikhil Meena
2.Dheerendra Rathor
3.Pragya Singh
4.Surendra Jaipal
5.कैलाश जाखड़
6.Ajay Kumar
7.Avijit Arya
8.मनीष कुमार
9.Pravin Kumar
10.Nimit Kumar Singh

आपकी कलम से #6 "पुलिस विभाग में फैला भ्रष्टाचार"



 "पुलिस विभाग में फैला भ्रष्टाचार"  

पड़ा - पड़ा क्या कर रहा , रे मूरख नादान
दर्पण रख कर सामने , निज स्वरूप पहचान
निज स्वरूप पह्चान , नुमाइश मेले वाले
झुक - झुक करें सलाम , खोमचे - ठेले वाले
कहँ ‘ काका ' कवि , सब्ज़ी - मेवा और इमरती
चरना चाहे मुफ़्त , पुलिस में हो जा भरती । 

कोतवाल बन जाये तो , हो जाये कल्यान
मानव की तो क्या चले , डर जाये भगवान
डर जाये भगवान , बनाओ मूँछे ऐसीं
इँठी हुईं , जनरल अयूब रखते हैं जैसीं
कहँ ‘ काका ', जिस समय करोगे धारण वर्दी
ख़ुद आ जाये ऐंठ - अकड़ - सख़्ती - बेदर्दी । 

शान - मान - व्यक्तित्व का करना चाहो विकास
गाली देने का करो , नित नियमित अभ्यास
नित नियमित अभ्यास , कंठ को कड़क बनाओ
बेगुनाह को चोर , चोर को शाह बताओ
‘ काका ', सीखो रंग - ढंग पीने - खाने के
‘ रिश्वत लेना पाप ' लिखा बाहर थाने के । "

- काका हाथरसी