शनिवार, 27 अप्रैल 2013

ज़िन्दगी के पन्नों से ३ ...


बारिश हो रही थी| हम 'शाखा' में खेल रहे थे| खेलते-खेलते मेरी चप्पल का कस्सा निकल गया था| 'शाखा' खत्म होने के बाद मैं कस्से को वापस जोड़ने की कोशिश कर रहा था| मुझसे हो नहीं रहा था, तो मेरे एक मित्र मेरे पास आए और कहा, "लाओ, मैं जोड़ देता हूँ कस्सा| आखिर 'जोड़ने' का ही तो कार्य है अपना|
'जोड़ना' अर्थात् देशवासियों को एकता के सूत्र में पिरोना|

लोग और मैं!!

 

एक इंजीनियरिंग की छात्रा होने के बावजूद मुझे मशीनों और फॉर्मूले से कभी ह्रदय से जुड़ाव नही हो पाया या यूँ कहें मैं इस में रस नही ढून्ढ पायी तो मुझे ये नीरस लगता है !   मैंने कई बार कोशिश की कि मैं काफी प्रयासों के बाद आई .आई .टी में आई हूँ तो क्या मुझे उसमें दिल नही लगाना चाहिए ? प्रथम वर्ष तो मैंने अपने को शायद कन्फ्यूज्ड पाया पर फिर भी नए नवेलों को जो कहा जाता है ,नया मुल्ला ज्यादा प्याज खाता है की तर्ज़ पर बड़ा जोश चढ़ता है ...तो वे सब कुछ करते हैं ....पढाई भी एक हद तक आने वाले सालों की तुलना में ज्यादा सीरियसली ले लेते हैं  :P धीरे धीरे सब मोह माया लगने लगती है ! :D पर शायद वक़्त से बड़ा गुरु कोई कोई नही होता यह बात तो सब मानते हैं ...समझ में आने लगता है और वो समझ ज़िन्दगी में कही उथल पुथल भी मचाती है ...और फिर कभी कभी बिलकुल सटीक बताती है कि इस दिल को क्या पसंद है !! .. लोगों में मुझे हमेशा रूचि रही है ....अब ,अच्छा -बुरा कुछ  नही होता ...हर किसी में कोई न कोई बुराई और अच्छाई दोनों होती है .देखने और परखने वाला होना चाहिए ! किसी ने कभी मुझसे पूछा कि क्या मैं उससे नफरत करती हूँ या पसंद नही करती हूँ ....तो मैंने कहा ...फिलहाल तो कोई ऐसा नही मिला मुझे जिससे मैं नफरत कर सकूं और अगर कोई नापसंद है तो शायद इसलिए कि हम उसे ज्यादा अच्छे से नहीं जानते !( आप क्या कहते हैं कि क्या बुरे से बुरा इंसान में भी अच्छाई ढून्ढ सकते हैं हम या नही ?) तरह तरह के लोगों से बातें करना रुचिकर तो होता ही है ,कुछ क्षणिक प्रसन्नता भी देता है ....हम अपने दोस्तों से तो अक्सर बातें करते हैं ...उन्हें जानते हैं या फिर जानने का भ्रम रखते हैं पर कितने लोग हैं जो अनजाने को देखकर मुस्काते हैं ,बातें करते हैं या उनकी कोई चीज़ अच्छी लगी हो तो तारीफ करते हैं .....क्या हम इसमें भी कंजूस होते जा रहे हैं ....या फिर ये वही हमारे स्वार्थी स्वाभाव का ही एक हिस्सा है ...या फिर सामने वाला क्या सोचेगा ....अच्छा इंसान है न जान न पहचान ...शुरू कर दी बात ! ...क्या ऐसा सोचने के कारण यह होता है या फिर कोई और वजह? आपने कभी गौर फरमाया है इस बारे में कि लोग और परिस्थितियाँ व्यक्ति को बहुत कुछ सिखा जाते हैं ! जो भी आपकी ज़िन्दगी में मिलता है उसका कोई तो कारण होता ही है और इसीलिए शायद यह बुरा भी है और अच्छा भी कि मुझे अपनी आगे की ज़िन्दगी में वो बातें जो ज़िन्दगी जीने में और उसके उतार चढ़ाव में स्थिर रहने में मदद करेंगी ...वो बातें और लोग ही याद रहेंगे न कि वो सैद्धांतिक पढाई जो पिछले तीन साल से कर रहे हैं ! लोग अक्सर कहते हैं ....कैसा आदमी है ....कितना भाषण  सुना के गया पर उस भाषण में क्या पता कुछ स्वार्थ का मटेरियल मिल जाए !! अलग बात है कि अर्थ हीन और सिर्फ वक़्त बिताने के लिए की जाने वाली बातों का भी अपना अलग महत्व होता है ....क्यूंकि ज़िन्दगी में हंसने के पल ,मज़ाक उड़ाने के पल, और ठहाका लगाने के पल आपको तरोताजा करते हैं ! ज्ञान वाली बातें तो कम लोग पसंद करते हैं और उसे उबाऊ भी समझते हैं ! और ये तो जायज़ है कि हर वक़्त हर कोई सीरियस  नही हो सकता या नही रह सकता ...उसके आनंद ,मनोरंजन के तरीके आप से जुदा हो सकते हैं पर होते तो हैं नही तो उसका दम घुटेगा ! और हर वक़्त खुश रहना सबके बस की बात नही ...ख़ुशी ,हंसी बांटना बेहद मुश्किल काम होता है ! और कई लोग अपना सारा दर्द छुपकर भी मुस्कुराते हैं,जोर जोर से हँसते हैं ,या और भी पागलपन करते हैं  ,मुझे बेहद आश्चर्य होता है ..कैसे ? पर जो भी हो वो भी एक रंग है लोगों का !
क्यूंकि इम्तिहानों के बाद अक्सर सच और भी अच्छे से स्पष्ट हो जाता है !!  ....:) :)
                                                                          ---------- स्पर्श चौधरी 

मुफ्त में



जब लाली पूरब में बिखर बिखर जाती है,
भर कर उस छटा को पलकों तले,
रूह मेरी खिल खिल सी जाती है.
खोजें सब उसको इधर उधर, अजी!
ख़ुशी तो यूं ही मुफ्त में मिल जाती है.

गगन से छलकती बरखा झर झर
जो तन पर गिरे तो, मन को भी
मेरे भिगो भिगो जाती है,
खोजें सब उसको इधर उधर, अजी!
ख़ुशी तो यूं ही मुफ्त में मिल जाती है.

महकी महकी सी ये पवन जब,
गले मुझको लगाती है, रूखे से
मेरे दिल को बहला बहला सा जाती है,.
खोजें सब उसको इधर उधर, अजी!
ख़ुशी तो यूं ही मुफ्त में मिल जाती है.
                                                          ------- भावना

रविवार, 21 अप्रैल 2013

नीला



मेरे क़दमों की ज़मीन से आसमान तलक
 
मुठ्ठी भर हौंसले, चुटकी भर जुनूँ , नन्हें अरमान
मचलती सोच भर का फासला है ।
जब दौड़ती हूँ ज़मीन पर
 साँस फूलने  लगती है
पाँव  से धीरे-धीरे एक दर्द ऊपर बढ़ता हुआ
पूरे जिस्म को तोड़ने लगता है ।
मगर रफ़्तार है कि बढ़ती जाती है
निरा पागलपन सीमाएं तोड़ने को उकसाता  है ।
मील के हर पत्थर को पीछे छोड़ते हुए
मैं आगे बढ़ती हूँ ।
मुझे कुछ नज़र नहीं आता
सब कुछ धुंधलाने लगता है
और फिर एक आख़िरी क़दम
मैं गिर पड़ती हूँ ।
कमाल है ना !
 तालियों की गड़गड़ाहट से मेरा इस्तकबाल होता है
चमकता सोना मेरे गले में
 हँसी से ख़ुश्क होंठ लबरेज़ होते हैं
 
मैं गिर कर टूटती  नहीं !
मेरा क़द और भी बढ़ जाता है


उस एक लम्हे में,
जब आसमान ज़मीन तक चला आये
ऊपर ताकते रहने की ज़रुरत नहीं रहती
कुछ नीला-नीला सा सब ज़मीन पर पसर आता है
‘जीत’ ज़िन्दगी का ज़ायका  ही बदल  डालती है यार मेरे !
              
                                                                                             --------------- रश्मि चौधरी 

शुक्रवार, 19 अप्रैल 2013

नीला





                                                            


"नील परिधान बीच सुकुमार
 खुल रहा मृदुल अधखुला अंग
 खिला हो ज्यों बिजली का फूल
  मेघ वन बीच गुलाबी रंग
   कामायनी की नायिकाश्रद्धाके वृत्तचित्र  में यदि नीले की  जगह पीला या कोई और रंग लिख कर देख लीजिये,  तो पंक्तियों का सोंदर्य शायद ही उतना  रहे. नीले आसमान के नजदीक, ऊँचे पर्वतो में स्थित गन्धर्व देश की राजकुमारी    के लिए  जयशंकर प्रसाद किसी और रंग की कल्पना  भी कैसे कर सकते थे. तभी तो कवि  नायिका के लिए नील रोम वाले वस्त्रो का ही चयन करते हैं.
 मसृण, गांधार देश के नील
 रोम वाले मेषों के चर्म,
 ढक रहे थे उसका वपु कान्त
 बन रहा था वह कोमल वर्म
 जनश्रुति है ,   विष के पान की वजह से शिव का कंठ नीला हो गया था. मैं नहीं मानता,  विष का रंग नीला भी हो  सकता है. संभव है, शिव गले में पुखराज  धारण करते हो, जिसका रंग नीला होता है , या फिर  आकाश का नीला रंग ही शायद   मानसरोवर झील में  घुल गया हो, जैसा की बाबा नार्गाजुन ने  कहा है.
तुंग हिमालय के कंधो पर,
छोटी बड़ी कई झीले हैं,
उनके श्यामल नील सलिल में,
......................................
हंसो को तिरते देखा है,”

 इसी मानसरोवर के नील सलिल के नियमित पान से  शिव का  कंठ नीला बन गया. जल्द ही  नीलकंठने  विशेषण से  संज्ञा का रूप धारण किया , और शिव का पर्याय बनकर शाश्वतता  हासिल की .
हाँ , अब मानसरोवर झील से ही बात याद आई , जरा देखिये झील का रंग कैसे आँखों में उतर कर उसे गहरा बना देता है. कोई पुराना गाना है ........
ये झील सी नीली आँखे,
 कोई राज है इनमें  गहरा ,
तारीफ करू क्या उसकी ,
जिसने तुझे बनाया
और जब गाने की ही  बात चली है , तो फिर किशोर दा का यह गाना कोई कैसे भूल सकता है:
नीले नीले अम्बर  पर चाँद जब आये
प्यार बरसाए , हमको तरसाए
फिलहाल यही चाँद की चांदनी जब समुद्र के नीलपन पर उतर रही थी, तो एक  यात्री इसनील जादू  का रहस्य जानने के लिए इतना प्रेरित हो गया, की उन्होंने इस जादू पर पर्दारमण प्रभावके सिद्धांत का प्रतिपादन कर उठाया. इस कार्य हेतु उन्हें नोवेल सम्मान भी मिला.
अब विज्ञानं की बारीकियो में उलझने के बजाय जावेद  अख्तर साहेब केनीला आसमा सो गयाकी तर्ज पर आसमान और समुद्र के नीलेपन को यहीं विराम देते हैं, और  थोड़ी इंकलाबी बाते करते हैं. मैं नील नदी के देश में होने वाली क्रांति की बात नहीं कर रहा हूँ , बल्कि हमारे देश के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में चंपारण के धरती पर एक जागरूक किसान राजकुमार शुक्ल और एक नवोदित नेता मोहन दास करम चन्द गाँधी के प्रयास से नील सत्याग्रह उपनिवेशवाद के दमनकारी एवं बाजारवादी  नीतियों  के खिलाफ किसानो के अहिंसक संघर्ष का पहला गवाह बना. नील आन्दोलन की सफलता ने लोगो को यह भरोसा दिलाया, की अहिंसक तरीके से भी प्रभावी प्रतिरोध किया जा सकता है. दूसरी नील क्रांति की भी आवश्यकता इस देश में महसूस की जा रही है. मझली एवं अन्य जल में रहने वाले जीवों की  आधुनिक खेती को  नील क्रांति कहा जाता है.   हरी , श्वेत   क्रांतियो के बाद अब यदि नील क्रांति को बढावा दिया जाये तो किसानो की आय में वृद्धि के साथ साथ कुपोषण की समस्या के समाधान में भी एक महत्वपूर्ण  कदम हो सकता है.

फिलहाल, विभिन्न प्रसंगों के  माध्यम से नीले की महता की चर्चा के पश्चात नल नील या नील आर्मस्तोंग  की कहानी बताने के बजाय इस  नील कथा    को  अपनी लिखी हुई कविता से विराम देना चाहता हूँ.

 मत बांधो  मुझे
  क्रांति के लाल रंग में,
  विरोध के काले रंग में,
  भक्ति के भगवा रंग में ,
  प्रगति के हरे रंग में,
 शांति के सफ़ेद रंग में ,
 समृद्धि के पीले रंग में
 मुझे विलीन हो जाने दो,
 कल्पना के नीले रंग में,
 समय और संयोग की
 इस छोटी सी जीवन तरंग में,
 पहचान की छोटी छोटी
 परिभाषाओं  के  परे ,
 क्या खूब हो, यदि मैं,
  आसमां और समुद्र के बीच
 घुल  जाऊं,  सिर्फ एक नीले रंग में.
                                  
                                 -    निशांत कुमार