गुरुवार, 14 फ़रवरी 2013

प्रेमोत्सव



आज वैलेंटाइन दिवस है, जिसको हमारे देश में भी प्रेम दिवस की शक्ल में पहचाना जाने लगा है। अब आपको अपने आस पास ऐसे कई लोग मिल जायेंगे जो आज के दिन या तो गुमसुम बैठे होंगे कि उनकी ज़िन्दगी में तो कोई प्रेम करने वाला/ वाली ही नहीं, या कुछ ऐसे भी होंगे जो अपने इस दुःख को एक दम्भी हँसी के पीछे छुपाये बैठे होंगे और गाते फिर रहे होंगे की हम तो अकेले हैं, सो प्रेम के साथ जो झंझट मुफ्त मिलते हैं वो हमको नहीं हैं, तो जी हम इस बात की ख़ुशी मनाएंगे। 

मैं सबसे कहना चाहती हूँ कि प्यार तो दुनिया में हर तरफ बिखरा पड़ा है, बस हम ही उसको महसूस नहीं करते। हमने अपने अन्दर के सब खिड़की दरवाज़े बंद कर रखे हैं और प्यार खटखटाता रहता है, पर हम सुनते नहीं, और उस बेचारे को हम तक पहुँचने का कोई जरिया भी नहीं मिलता। अजीब लगा पढ़कर? कह दो की नहीं, तुम फ़ालतू बात कर रही हो। पर एक बार ज़रा ये सोचकर देखो कि  जिस हवा में तुम साँस ले रहे हो, जिस रौशनी में सब कुछ देखते हो, क्या वो भगवान् का बरसाया हुआ प्यार नहीं तुमपर? ये प्रकृति हमसे इस कदर प्रेम करती है कि  हम उसको कब से दुहते आ रहे हैं, लूटते आ रहे हैं, तब भी हमें फूल देती है, फल देती है, खनिज, अन्न सब तो देती है। हमारे माता पिता, जिहोने हमें इतने प्यार से पाल पोस कर बड़ा किया है, क्या वो भूल सकता है कोई? हमारा परिवार, हमारे दोस्त सब जो हमको गिरते ही संभालने आ जाते है, प्यार ही तो करते हैं हमसे। 

हाँ, मानती हूँ की उस उल्फत की जगह कुछ ख़ास होती है दिल में, पर प्यार तो अब भी है हमारी ज़िन्दगी में। बल्कि, मैं तो कहती हूँ कि ज़िन्दगी प्यार के रंगों से रंगी हुयी एक तस्वीर है। हमारा कर्तव्य है की हम जो प्यार इस जहाँ से हासिल करते हैं, वो प्यार इस दुनिया को, उन सबको वापिस उतनी ही शिद्दत से दें। प्यार के इस लेन- देन के बीच कभी तो वो पल भी आएगा जब हमको वो मुहब्बत  हासिल होगी जो हमें मुक्कमल बना दे। पर तब तक, प्यार का ये उत्सव मनाते रहो! 

मुलाकात ...




वो कल की एक मुलाकात 
एक लम्हा आज भी है वहाँ थमा हुआ
वक्त बढ़ चला 
औ मैं भी कैद उसमें 
पर नज़रों की दूसरी तरफ 
वही द्रश्य है 
मेरा ज़हाँ खुद को किये मेरे हवाले 
मौजूद है समीप ही 
वो चेहरा उसका जुस्तजू से भरा हुआ 
मुस्कान अधरों पे अश्रु छलके लिए हुए
कुछ बहके हुए ,कुछ डरे हुए

अब तो डरने लगा हूँ मैं भी
उसकी तमन्नाओं से, उसकी उमीदों से
जिस ज़हाँ में कल का भरोसा नहीं
वहीँ मेरा ज़हाँ कल में खोया हुआ है !!

                                                   
                                                      ....... शक्ति शर्मा

मोहब्बत!




मोहब्बत की बुनियाद पर तो ये मुक्कम्मल जहाँ टिका हुआ है जनाब! अब वैलेंटाइन्स डे आ रहा है तो मैंने सोचा कि चलिए कुछ हमारी गुमसुम सी कलम से भी इश्क फरमा लिया जाए!।इस दुनिया के ज़र्रे ज़र्रे में मोहब्बत घर करती है तभी तो हम सब साथ में जीते हैं .नही तो आदमी तो है ही खुदगर्ज़ अव्वल दर्जे का! बस जिस्मानी लिबास बदल जाता है मोहब्बत का ...कभी इंसान से ,कभी किसी चीज़ से ,कभी किसी पालतू जानवर से ....! पर मेरे लिए मोहब्बत के मायने शायद सब से अलग हो सकते हैं। ।मेरे लिए प्यार के तसव्वुर को सबसे पहले जो तीन शख्स सच करते हैं वो हैं मेरी माँ,पापा,और छोटी बहन ! उन्होंने हर वो चीज़ की है मेरे लिए जो वो ज्यादा से ज्यादा कर सकते हैं मेरे लिए .बदले में तो मैं क्या ही उनके लिए उतना कर पाऊं जो वो मेरे लिए करते हैं।और वैसे भी वो बदले में कुछ नही चाहते क्यूँकी यही तो प्यार की परिभाषा है और प्यार की ,अपनेपन की पहली सीख तो वहीँ से मिलती है न!सच्चे प्यार में चाहे खुद को तकलीफ हो जाए पर अगर उसके चेहरे पर एक मुस्कान आ सके तो प्यार के मायने पूरे हो गये . सच मानिए तो प्यार की पहली सीढ़ी विश्वास है,इतना भरोसा कि एक बार खुद पर शक हो सकता है पर उसपर नही! क्यूंकि वो आपको इतना जानता है कि आपसे बेहतर उसे पता होगा कि कहाँ आपके कदम डगमगायेंगे ! उसकी रग़ रग़ से आप वाकिफ हों ....तो लफ़्ज़ों की कोई ज़रुरत ही नही।क्यूंकि दिल की गहराईओं की पुकारों को सुनने के लिए आपको बाहर के शोर को तो कम करना होगा न! कहते हैं जो बातें जुबां से नही कही जा सकतीं वो ये कम्बख्त आखें बखूबी कह डालती हैं ...कमबख्त इसलिए क्यूंकि जब आप कुछ छुपाना चाहें तो भी नही देती ये .जब आप किसी से दिलों जान से मोहब्बत करते हैं तो आप खुदगर्ज़ नही हो सकते ....आप सिर्फ आप दोनों के बारे में ही नही सोच सकते ..आप परिवार के खिलाफ जाकर उनकी दुआओं के बिना आगे नही बढ़ सकते ....हाँ अगर वो नही समझते तब और बात है पर तब भी उनके साथ मशविरा करके ....उन्हें समझाकर उनके आशीर्वाद के बरगद तले अपना प्यार का आशियाँ बनाइये !....कहते हैं जब हम किसी से बेइन्तहा मोहब्बत करते हैं तो हम जाने अनजाने सबसे ज्यादा उसे ही तकलीफ भी देते हैं ....ये एक दम सही भी है क्यूंकि कहीं न कहीं यही वह शख्स है जिस के सामने आप जी भर के रो सकते हैं ,गुस्सा निकाल सकते हैं, पर उसकी तकलीफ की मरहम भी तो आप ही बन सकते हैं! शायद इन फिल्मों ने जो तस्वीर प्यार की दिखाई है,उससे आजकल की पीढ़ी के हम लोगों में से ज्यादातर दिखावे के लिए गर्लफ्रेंडऔर बॉयफ्रेंड बनाते हैं ..और कब तक निभायेंगे इसका भी कोई ठिकाना नहीं .... हम उसे ही प्यार मान बैठते हैं .शरीर से कहीं ऊपर उठकर दो आत्माओं का संगम है सच्चे प्यार का ये रिश्ता.वो रिश्ता जो एक बार जुड़ गया तो ताउम्र निभाने का है।
सिर्फ मोमबत्तियों की रोशनी ,खूबसूरत फूलों की खुशबू ,चॉकलेट्स या रोमांटिक म्यूजिक ही माहौल को रूमानी बनाने के लिए काफी नही ....अक्सर लड़कियां इस मामले में काफी परियों की दुनियां में रहती हैं।तो शायद लड़कों को भी लगता है कि इन सब चीज़ों से वो इम्प्रेस हो जाएंगी पर ...अगर ये न हो तो लगता है कितना अनरोमांटिक है ये ! पर इन सबसे बढ़कर प्यार का हर लम्हा ख़ास होता है ....शायद ये सब चीज़ें उन्हें और ख़ास बना दें ..! अपने साथी का आप उसके बुरे और अच्छे हर पल में बखूबी साथ निभाएं ....अगर कुछ खोने के लिए है तो आपका इगो .जो काफी मुश्किल है ....जो आपको एक दूसरे से दूर कर सकता है ....जो आपके सबसे करीब होता या होती है वो चाहे आपका कितना भी मज़ाक उड़ा ले ...कितना ही आपको टीज़ करे ....पर ज़रुरत पड़ने पर आपके लिए अपनी जान भी पेश कर सकते हैं .....खैर इससे याद आया कहीं पढ़ा था मैंने ...एक बार एक पत्नी ने बिलकुल रूखे से ...अनरोमांटिक पति से पूछा कि क्या आप उस पहाड़ी पर जाकर वो बेशकीमती फूल ले आयेंगे जिसके बारे में मुझे और आपको दोनों को पता है कि आप जिंदा वापस शायद ही आ पाएंगे ...तो पति बोले कि मैं इसका जवाब सुबह दूंगा ...उनकी सारी रात करवटों में गुज़री ....सुबह एक दूध के गिलास के नीचे दबे कागज़ के छोटे से टुकड़े पर जो लिखा था वो पढके उसकी आँखों से आंसुओं का जो सैलाब उमड़ा ...वो पूरी कहानी आप ही कह गया ....उसमें लिखा था .....क्यूँ उसका जिंदा रहना उसकी ज़रुरत ही नही दिली ख्वाहिश भी है क्यूंकि वो जब तक नही मर सकता जब तक वो यह पक्का न कर सके कि इस जहाँ में उससे भी ज्यादा कोई उसे प्यार ,उसकी फिक्र,देखभाल कर सकता है !...

पर इस प्यार और एह्तियाना बर्ताव के चक्कर में अगर कहीं औरत के स्वाभिमान ,उसकी आज़ादी के साथ कोई आदमी खेलता है तो वो बेशक झूठा या कुछ दिनों का दिखावटी प्यार है ....क्यूंकि विश्वास के बाद अपने साथी की ,उसके उसूलों की ,उसके ज़ज्बातों की इज्ज़त सबसे बड़ी चीज़ होती है . मनोवैज्ञानिक तौर पर भी सिद्ध हो चुका है कि जब एक औरत प्यार करती है तो अपना सब कुछ देकर भी उसे निभाती है पर ...आदमी को उसका ,उसके प्यार का ज्यादा इम्तेहान नही लेना चाहिए नही तो वो अगर चीज़ों को जोड़ना जानती है तो उसके गुस्से से भी आपको कोई नही बचा सकता ....मर्द होने का दंभ ज्यादा देर तक किसी रिश्ते में आड़े न ही आये तो बेहतर होगा ! 

तो वैलेंटाइन्स डे भले ही पाश्चात्य संस्कृति से आया हो पर प्रेम की सच्ची और सर्वोत्कृष्ट परिभाषा तो हमारी धरती पर कृष्ण और राधा ने ही दी थी ... शायद पश्चिम का अनुसरण करने के कारण आज हर तरफ इसका विरोध किया जाता है ...पर कहते हैं प्रेम सबसे अनुभूति है इस दुनिया की !..मनुष्य मात्र से प्रेम, प्रकृति से प्रेम या फिर किसी 'ख़ास ' से !
                                        
                                                                      ----------- स्पर्श चौधरी 

बुधवार, 13 फ़रवरी 2013

गुमनाम मौतें



                                                             

उनकी मौत पर,

ना कभी टी.वी. एंकरों ने चीख चीख कर बहसें की,

ना कभी बुद्धिप्राणियों ने लच्छेदार भाषाओँ में,

मानवाधिकार की वकालत की,

ना ही अखबारों के सम्पादकीय में उनका जिक्र था,

ना ही नेताओं के भाषणों में उनका फ़िक्र था,

ना तो कोई मोमबती लेकर इण्डिया गेट पर जलाने आया ,

ना ही किसी शहर को जबरदस्ती बंद कराया गया,

ना ही किसी ने फेसबुक पर इसे लेकर कोई टिप्पणी की,

ना ही किसी की भावनाए कभी आहत हुई,

ना ही किसी ने भेदभाव की शिकायत की,

ना ही किसी ने न्याय मिलने पर ख़ुशी जताई,

ना ही किसी ने देशभक्ति/द्रोह की रोटियाँ सेंकी,

ना ही किसी ने स्वायत्ता की सियासी गोटियाँ फेंकी,

किसी ने जहमत नहीं उठाई,

मरने के पहले या बाद में,

कहीं भी स्पीड पोस्ट भेजने की,

बस एक गुमनाम मौतों के रजिस्टर में ,

एक संख्या जोड़ दी गयी ,

कभी कभी आलसवश वह भी छोड़ दी गयी,

उनके मौत के पहले कभी,

उनकी अंतिम इच्छा भी नहीं पूछी गयी ,

यदि पूछा भी जाता तो शायद वह ,

एक कम्बल और बिस्तर से ज्यादा कुछ नहीं बताता ,

मरने से पहले काश वह, एक दिन चैन से सो तो पाता.

                                                                           - नेपथ्य निशांत

रविवार, 10 फ़रवरी 2013

गोष्ठी राजशेखर जी के साथ

इस दफ़ा गोष्ठी में हमारे साथ थे राजशेखर जी, जिन्होंने तनु वेड्स मनु के ज़रिये हमें बहुत उम्दा गाने दिए और आगे भी कई फिल्मों के लिए गाने लिख रहे हैं. इस मुलाक़ात में हमने उनके द्वारा रचित बहुत खुबसूरत कविताएँ सुनीं, जिसमें कुछ कविताओं को  सांझा कर आइये गोष्ठी को कुछ मुकाम आगे पहुँचाया जाए.

यह  एक हाइकू मैथली में-

लीपल  ऐंगना
जों लिखल हाथ 
नभकी कनिया
खाय धीपल भात…

नौ चाँद बीते..

रातें अब तक
काली काली
ख़ाली ख़ाली
झींगुर कुतर जाया करती थी
फिर,
तुम्हारे सपनो ने रातों को खबर दी
कि तुम आ रहे हो- सच में..

रात ने शाम से कुछ वक़्त उधार मांगे
सूरज से गुज़ारिश की कि वो जल्दी डूबे
चाँद से कहा “तुम रोज़ आ जाओ न प्लीज़ “
जुगनुओं की रानी को बीते सालों का वास्ता दिया
तब लाख जुगनुओं से ज़मीं पर सितारे छिड़क दिए
अब बावली रात फाख्ते की तरह कूदती रहती है-
रात रानी की हल्की डालियों से,
रेडियो सीलोन पर आती, 
तलत महमूद की थरथराती भीगी आवाज़ तक..
….
घबराहट और इंतज़ार,
इंतज़ार…
इंतज़ार और घबराहट,
….
 कल नौ चाँद बीते..वो नहीं आये..

..अब चाँद, सितारे, जुगनू, सूरज
मेरी रातों को ताना देते हैं-
नौ चाँद बीते..वो आये नहीं ?




सबमें वसंत बाँट देना



बिनी, छत के उस कोने जहाँ 

बोरियों में रखा सीमेंट जम गया है  

सबसे छुपा कुछ जिद्दी नवम्बर बो दिए हैं मैंने  

देखते रहना ..  

अपनी हंसी से सींचते रहना … फरवरी तक, 

शर्माती हुयी  सिंदूरी कोंपले आ जाएंगी फिर मार्च तक फल .  

थोड़ा थोड़ा काट कर सबमें वसंत बाँट देना 

 

भ्रष्टाचारी :कुछ पॉइंट ऑफ़ व्यू 1,2,3,4,5

 

1
ठग..चोर.. भ्रष्टाचारी…
ये सड़कों पर के शब्द हैं..
घर के बाहर बोले जाने वाले – कैजुअल  से शब्द
पान खाने के बाद थोड़ा चूना और पीपरमिंट माँगने जैसा होता है ये सब बोलना..
हम इन शब्दों को खर्च आते हैं बाहर
और फिर हम घर लौटते हैं
पीक थूकते  हुए
बिजली के खंभे पर..
वही शब्द -
रात में सड़कों पर पीक सने और घिनौने हो जाते हैं
रात भर शराब की बंद दुकानों के  सामने बूँद बूँद गिरगिराते
फिर बहकर चले जाते हैं
अख़बारी पन्नों पर
सुबह
चाय के वक़्त
घरों तक पहुच जाते हैं ..
चोर ..ठग ..भरषटाचारी
जिन्हें हम सड़कों पर छोड़ आये थे..
2…
वो आक्ण्ठ डूबा है
“उसमें”
जिसे तुम पाप कहते हो
और वो मौका
उसके पास है बहुत मंहगी परफ्यूम
जिसके फाहे वो कान मे रखता है
वो तुम्हें  ना सुनता ना सूंघता है…
3…
भगवान दसावतरी
होते हैं

हर युग में “प्रकट” होते हैं
राक्षस और भ्रष्टाचारी नहीं
वो तो हमारी तुम्हारी तरह
माँ को तकलीफ़ देते हुए
दाई के हाथों घर
या सदर अस्पताल में पैदा होता है..
खिलौने के लिए किल्लोल करते हुए
वो एक दिन जब उठा लता है पड़ोसी का
पुराना  टाइयर
सहमता रहता है की माँ ना देख ले
पर माँ जब देखकर भी उसे नही डांटती
तो उसे ल्गता है
उसने कुछ बुरा नही किया
इतना तो चलता है
भ्रष्टाचारी स्कूल की लाइन में लगा
बिल्कुल तरन्नुम में गाता है
” इंसाफ़ की डगर पे, बच्चों दिखाओ चल के
ये देश है तुम्हारा, नेता तुम्हीं हो कल के ”
वो बेताला नही होता..
वो नही पढ़ना चाहता है गणित
उसे प्यार हो जाता है
प्रसाद की ” इरा” से
पर इरा का प्यार
उसे मोटी तनख़्वाह वाली नौकरी नही दिला सकता
जिससे पूरकस दहेज मिल सके
तो वो मास्टर और बाबूजी के कहने पर सायंस  ही लेता है..
अब  वो प्रसाद और इरा से दूर जा चुका होता है ..
वो भी तालियाँ बजाता  है
विलेन और स्मगलर  के पीटने पर
सिनेमा  हाल तक
हीरो उसका भी “हीरो” होता है..
वो हमारे तुम्हारे जैसा ही रहता है..
चाय पीता भूंजा फांकता
फिर सालों बाद एक दिन खबर आती है
उसके घर छापा पड़ा है
वो तो
लंपट है..ठग है चोर है..
करोड़ों का माल अंदर किए हुए है
दोस्त तुम बेकार में बुरा मान गये
मुझे पता है तुम्हारी कहानी भी ऐसी ही है
पर मैं किसी और की बात कर रहा था
अब लो..
अबे सही में …
५..
दिल्ली वाले जीजाजी
का अंकगणित
अलगे है..
साला यहाँ साल भर
रसुन्तेला निकल जाता है
खेत में काम करके
हुआँ उ ए सी में बैठ के बोलते हैं कि
खेती करते रहो
देश में खाद्यान्न की कमी ना हो
सला एक बार मौका मिले ना तो सब हसोत फसोत के बैठ जाएँगे
फिर बोंग  मराए ई खेती पेती..




उनकी  वेबसाइट का पता : http://rajshekhar.in/

शनिवार, 9 फ़रवरी 2013

फूल का सवाल





खिला है जो आज,कल वो भी
 मुरझा के झर जायेगा,
उसकी कोमल सी पंखुड़ियां
तिनका तिनका बिखर जायेंगी,
हवा में न रहेगी उसकी भीनी सी
वो खुशबू , धूल संग कुचला जाएगा।

शायद बाकी रहें कुछ तसवीरें
या शायद किसी किताब के
पन्नों में बस जाए उसकी महक,
पर पूछे कुसुम सवाल ये ,
कि ओ माली, जब इसी मिटटी
में था मिलाना, तो क्यों दिया
ये रूप, क्यों दी सुगंध, जब
दो पल में सब है छीनना ?

मुस्कुराते माली ने कहा की अरे
पगले, यही तो नियम है, खिलकर
 मुरझाना, हाँ, यही तेरी नियति भी।                              
सवाल जो तूने पूछा है, तो जवाब भी सुन।
अपने दो पलों में तू इसी रूप, इसी
खुशबू से, दुनिया को खूबसूरत बनाता है,
उदास चेहरों पे मुस्कानें लाता है,
यही दो पल हैं तेरे पास पर तू यादें
बनकर जिए जाता है।

खिल तू कुछ इस तरह कि
दूर दूर तक फैले तेरी खुशबू,
खिल कुछ इस तरह कि नए
खिलते फूलों को तुझसे सीख मिले,
फिर मिटकर भी तू रहेगा अमर।


बदलाव


माँ के बिना जो बच्चा सोता न था रात भर
उस छड़ी टेकती बूढ़ी माँ के सहारे क्या हुए
आँख के तारे की शरारत पर वो मुस्काती थी
आज चमक उन तारों के यू गायब क्यूँ हुए
गाँव की छतों पर कई तारे जो मिलते थे
ज़माने पहले के ये हसीं नज़ारे क्या हुए                                 
चौपाल की बैठक की मस्ती और कहकहे
बच्चों को सुनाये जाने वाले वो किस्से क्या हुए
इस अंधाधुंध भौतिकतावाद के नशे में
हम भारतीय बदल अब कैसे क्या हुए। 
                          ------ विकास पाण्डेय 

शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2013

यह ऐसा मुद्दा है जिसके लिए कोई एक ज़िम्मेदार हो ही नहीं सकता है !पूरे समाज की सामूहिक जवाबदारी होती है अगर महिलाओं के प्रति अपराधों के घटने की दर घटने की बजाय और तीव्रता और शीघ्रता से बढती जा रही है तो! पुलिस या क़ानून इंसान में खौफ पैदा करने के लिए बनाये गये हैं जब भी वह कोई कानूनन गलत काम करने जा रहा है तो ...क्यूंकि वर्तमान में डर से ही अनुशासन लाया जा सकता है .स्वानुशासन की बातें आजकल व्यावहारिक रूप से बेमानी हैं .आज अगर महिला को कोई (हाल ही के अध्यादेश के पारित होने के पूर्व की ही बात ले लीजिये अगर आप भी मेरी तरह आशावादी हैं तो )छेड़ता  है या कोई अपराध करता है तो पुलिस ही एक असंवेदनशील ईकाई बन जाती है .-कई बार तो यह रक्षक ही भक्षक बन जाती है .देश की कानूनी प्रक्रिया तो लचर है ही ,पीढियां निकल जाती हैं और पीड़ित तो क्या उनके परिवार जन भी आस की ताक में लगे रहते हैं।
 अरुणा शानबाग के साथ हुए हैवानी बलात्कार की सज़ा आज भी उसकी आत्मा एक ' जिंदा लाश ' ढोते  भुगत रही है पर उसका दोषी न सिर्फ सात साल की सजा ही भुगता बल्कि आज बड़ी शान से दूसरे किसी अस्पताल में नौकरी करता है। पर  मीडिया ने  इस खबर को ऐसे लिया -अरुणा के साथ एक साथी वार्ड बॉय ने बलात्कार किया .वो गुमनाम है पर अरुणा को सब जानते हैं !.क्या उसे शर्मसार किया गया ....क्यूँ ऐसे अपराधियों के चेहरे पर कपडा ढंकते हैं ....जबकि कानूनी तौर पर गलत होते हुए भी अक्सर पीड़ित महिला या लड़की तो सुर्ख़ियों में ला दी ही जाती हैं !निर्भय तो ऐसी थी जिसने सारे  देश को जगाया पर हर रोज़ कितनी ही ऐसी निर्भया ,उनके शरीर और आत्माएं बलात्कृत होती हैं -कई तो थानों के रजिस्टरों पर दर्ज भी नहीं होती क्यूंकि एक तो पुरुष वर्चस्व वाले पुलिस महकमे के सामने महिलाएं वैसे ही सामजिक मर्यादा के भय से नही जातीं और फिर उनकी ढीली और घटिया अमानवीय मानसिकता ,रवैया उन्हें पुलिस कोर्ट जाने से रोकती है  -ऐसे ऐसे अभद्र ,अपमानजनक शब्दों में पूछताछ करते हैं .
  
          जब एक औरत पर कोई अश्लील टिपण्णी करता है ,या उसकी इज्ज़त के साथ खेलता है तो अधिकांशतः मामलों में वह किसी को नही बताती या बताती भी है तो परिवार इसे गुप्त रहने देता है क्यूंकि बात परिवार की इज्ज़त से जुडी होती है!! कोर्ट में भी खासकर भारत में ऐसे सवाल किये जाते हैं जो उसके साथ हुए हादसे के जख्मों को ताज़ा कर देते हैं .अखबार में ही मैंने पढ़ा था एक बार कि एक पीडिता के चिकित्सकीय परीक्षण के दौरान एक 'महिला ' नर्स उसे बार बार ऐसे बुलाती थी -कौन है वो जिसका रेप  हुआ है !उसकी पहचान अब उस जख्म से है ....उस बेचारी होने में है .

लोग अभी भी सोचते हैं कई जगहों पर कि लड़की ने मुंह 'काला ' कर लिया है ..तभी तो आज भी 'ऐसी ' लड़कियों को उन्ही अपराधियों के साथ ब्याह दिया जाता है जबकि 'पति' होने के कारन उसका अपराध माफ़! क्यूँ ...अरे अब उससे ब्याह कौन ही करता तो उसे ये ज़िन्दगी भर की सजा दे दो ..करे कोई सजा भरे कोई! 

इसीलिए यह बेहद संजीदा सवाल जब आधी आबादी से जुडा हो तो हम सब को एक ऐसे समाज की नींव रखनी होगी जो उस हिस्से के लिए भी सुरक्षित हो और इसके लिए शुरुआत घरों से ही करनी होगी .आखिर किसी भी असंवेदनशील पुलिस ,नर्स या वार्ड बॉय की मानसिकता वहीँ से बदली जा सकती है .अपने बच्चों को खासकर के लड़कों को औरत की महत्ता ,सम्मान और बराबरी का ज्ञान भी दें और जीवन में उतारने को भी कहें।बेटे बेटियों को एक सी परवरिश दें .उनके साथ एक सा व्यवहार करें और उन्हें एक सफल या धनवान व्यक्ति  बनाने के चक्कर में एक नेक इंसान बनाना न भूलें जो लिंग,जाति ,धर्म,की संकीर्णताओं से परे सोचे और करे! 

गुरुवार, 7 फ़रवरी 2013

उड़ान !


दरअसल मैं खाली वक़्त में अक्सर सामाजिक और मानवीयता से जुड़े मुद्दों पर नेट पर वीडियो या शो तलाशा करती हूँ ....बस इसी दरमियान मुझे उड़ान का पता चला .....-

ये लेख मैं लिख रही हूँ एक पाकिस्तानी टी . वी .शो ' उड़ान ' से प्रेरित होकर जो मैंने कल रात देखा और सारी रात मेरे दिमाग में वही घूमता रहा .आज सर में हल्का सा दर्द भी है इसी वजह से ...इसीलिए मस्तिष्क उन विचारों से दूर नही हो पा रहा है .कैसे होगा भला कुछ संवाद दिमाग में घर कर गये हैं मसलन -

'एक औरत के लिए बदकिरदार लफ्ज़ कोड़े के जैसे होता है जो हर वक़्त उसके वजूद पर बरसता महसूस होता रहता है ! 

भारत के हालातों पर तो सारा देश वाकिफ है पर पाक के औरत से जुड़े मसलों का एक वैसा ही पर कुछ अलग ढंग का चेहरा देखने को मिला !

दूसरी मुख्य किरदार सवेरा का बोल्ड और आत्मसम्मानी होना,उसका उस जानवर को उसकी ही कडवी दवाई का स्वाद चखा देना मुझे बेहद अच्छा लगा !
        '' जैसे सबके सामने मुझे बियाह के लाये थे वैसे ही सबको इकठ्ठा करो तभी मुझे छोड़ सकते हो तुम ! ' मेरा कमरा है ...चली जाओ बाहर -शौहर की अहमकाना भभकी ...पर बीवी का कहना कि इस कमरे में सारी चीज़ें मेरे ज़हेज़ की ही हैं ....तुम बाहर जाओ! कहीं न कहीं हर औरत को यूँ होना होगा .पर शो की अन्य मुख्य नायिका जो 'उड़ान' टॉक शो की मेजबान थी -जो एक बेहद मज़बूत और आधुनिक महिला नज़र आती थीं-उसके साथ भी वही शख्स धोखा करता है तो उनकी रूह भी काँप उठती है .सच ही है -उसी के लफ़्ज़ों में -मुझे लगता था कि कम -से-कम मैं तो शादी ,बच्चा और फॅमिली के बारे में फैंटेसी नही रखती पर मैं गलत थी -साना सईद भी ट्रैप हो सकती है -ऐसा कहते हुए मुझे बेहद अफ़सोस होता है कि 'The' sana saeed has been trapped like any other normal girl ! -क्यूंकि हर औरत के अन्दर का दिल हमेशा वही रहता है -सच्चे प्यार को चाहता है -और एक दूसरी नायिका के शब्दों में-औरत चाहे कितनी भी इंडिपेंडेंट क्यूँ न हो -दिल से वही होती हैं ....कुछ दिखाती हैं कुछ छुपाकर रखती हैं और ....पर .जब ये दिल टूटता है तो उसकी दुनिया तबाह हो जाती है -कुछ इस ग़म में पागल हो जाती हैं या कर दी जाती हैं या कुछ उस जैसे उसे करारा जवाब देती हैं पर अन्दर बहुत कुछ रीता होता है पर उसे तमाम लोगों के सामने ज़ाहिर नही होने देती .
                एक और मुख्य किरदार थीं आयशा -उसी डॉक्टर फ़राज़ की पहली बीवी ! जिन्हें किसी ज़हनी बीमारी का बहाना बनाकर या कहें पागल करार देकर रात के बारह बजे तीन बार तलाक बोलकर सारे तालुकात ख़तम कर लिए जाते हैं !! मैं जानती थी कि ऐसा होता है पर सच में ऐसा देखकर मैं सच में काँप गयी .मर्द को औरत की आँखों में अपना खौफ देखना अपने झूठे अहम् की पुष्टि के लिए बेहद ज़रूरी है !वो अपनी बीवी को अपने से ज्यादा तालीम ,शोहरत और काबिलियत के साथ नही देख सकता .चाहे औरत को उसका घमंड हो न हो !

# बेटी की पढ़ाई छुड़ाकर शादी कर देना कैसे एक पिता की सबसे बड़ी गलती बन जाता है -और जिसे वह एक सीख के तौर पर लेता है और अपनी दूसरी बेटी के साथ नही दोहराता ! काश तब उसने जल्दी न की होती तो आज आयशा एक डॉक्टर होती और अपने तरफ बढ़ते हर हाथ को रोक पाती .
# एक और संवाद जो आयशा की ग़मज़दा ज़िन्दगी के पन्नों से है -मैं उस तरह की लड़की थी जो मायके में अपने वालिद के और सुसराल में शौहर को ही अपना सब कुछ मानती थी -वही शौहर -जो प्यार के इम्तिहान के नाम पर सिगरेट से उसे जलाता था-एक निहायत ही जानवराना हरक़त -क्या तुम मेरे लिए दर्द सकती हो?

# पुरुष मानसिकता का एक और चेहरा -तुम अपने अब्बू और मुझमें से किसे ज्यादा प्यार करती हो -पलटकर उसका पूछना -भला ये कैसा सवाल है ? मैं अगर पूछूँ कि आप अम्मी और मुझमें से किसे ज्यादा प्यार करते हो तो ?तो तपाक से रूखा सा जवाब मिला -मम्मी से और अगर तुम कहती कि तुम अब्बू से ज्यादा प्यार करती हो तो मैं अभी इसी वक़्त तुम्हे तुरंत तलाक़ दे देता ! वाह रे दोहरा चरित्र -डबल स्टैंडर्ड्स !!-कुरआन में कहाँ लिखा है कि औरत दोयम दर्जे की होती है .

# जब एक खातून ही दूसरी पर ज़ुल्म ढाती है तो बेहद दुःख होता है -वह भी खासतौर पर तब जब औरत इतनी तालीम पाकर इज्ज़त के परों के साथ उड़ान भरने लगे कि उसे अपने ही मासरे की बाकी औरतों के खून और बेचारगी से फडफडाते परों का शोर भी न सुनाई पड़े .

# कहते हैं तालीम हमारा किरदार बनाती है पर मुझे इसमें शक है क्यूंकि आजकल तालीम से ज़हनी ख्यालों का कोई तालुक नही है क्यूंकि ज़्यादातर ऐसा होता है के बुनियाद पर हम उसे generalize नही कर सकते !
# औरत का वजूद सिर्फ औलाद पैदा करने तक ही नही होता ...यह मुद्दा भी उठाया उड़ान ने -उसकी रसोई और शौहर से बढ़कर भी एक शिनाख़्त होती है !

# डॉक्टर फ़राज़ जो 'उड़ान ' टॉक शो में एक मनोरोग चिकित्सक के नाते आता है -किसे पता होता है कि यह हैंडसम सा दिखने वाला डॉक्टर खुद ही एक तरह की ज़हनी बीमारी की गिरफ्त में है पर उसे यह बीमारी तीन जिंदगियों के साथ खेलने का कोई हक नही देती! 

# सब कुछ समझना ,सारी वजहों को पहचानना शायद बाकायदा तालीम से सिखाया जा सकता है पर उसे अपनी ज़िन्दगी में उतारना ही उसे मायने दिलाता है।

# और आखिर में '' उड़ान हमेशा से मुश्किल होती है .,औरत के लिए तो और भी मुश्किल होती है खासकर परों के बिना इसीलिए औरत को तालीम ,बराबरी और इज्ज़त के परों से नवाज़ा जाए ताकि वो भी अपने ख्वाबों की उड़ान भर सके !! :)

सोमवार, 4 फ़रवरी 2013

पुरुषोत्तम अग्रवाल की दो कविताएँ


अश्वमेध

तुम बहुत सरपट दौड़े हो
थोड़ा ठहर जाओ
न, तुम नहीं थके,
जानता हूँ
लेकिन तुम्हारी दौड़ ने बहुतों को कुचला है
ठहर जाओ.
तुम्हारी रगों में फड़कती बिजली
तुम पर नहीं
दूसरों पर गिरती है
कोई वल्गा नहीं तुम्हारे मुँह में
फ़िर भी तुम्हारी पीठ खाली नहीं
वहाँ सवार है पताका
जिसकी फहराती नोंक
तुम्हें नहीं दूसरों को चुभती है
ठहर जाओ.
तुम पूजित हो, अलंकृत हो
ऊर्जा तुममें छटपटाती है
सारी दूब को रौंद कर जब तुम लौटोगे
बिना थके भूमंडल को नाप लेने के
उन्माद से काँपते, सिर्फ़, सिर्फ़ उत्तेजना के कारण
हाँफते
तब तुम्हें काट डालेंगे
वे ही लोग – जिनके लिए तुम दौडे थे.
वे काट डालेंगे
तुम्हारा प्रचंड मस्तक.
तुम्हारा मेध
उनका यज्ञ है .


 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

वसीयत

छूट गयीं जो अधूरी, मुलाकातें तुम्हें देता हूँ
हों न सकी जो बातें, तुम्हें देता हूँ
जो कवितायें लिख न पाया, तुम्हें देता हूँ
जो किताबें पढ़ न पाया, तुम्हें देता हूँ
मर कर भी न मरने की यह वासना
स्मृति की बैसाखियों पर जीने की यह लालसा
तुम्हारी कल्पनाओं, यादों के आकाश में
तारे की तरह टिमटिमाने की यह कामना
यह भी तुम्हें देता हूँ
जहाँ से शुरू होती है आगे की यात्रा
वहाँ से साथ रहना है सिर्फ़ वह जो किया
अपना अनकिया सब का सब
पीछे छोड़
कभी वापस न आने का वादा
तुम्हें देता हूँ.

रविवार, 3 फ़रवरी 2013

जागृति : यात्रा यादों भरी (भाग तीन)



अगला पड़ाव था हुबली कर्नाटक के एक छोटे से गाँव -कालकेरी संगीत विद्यालय और सेल्को ! इस धारवाड़ जैसे छोटे से शहर से दूर बसा हुआ यह स्कूल बिलकुल गुरुकुल की तर्ज़ पर चलता है।एक पूरी तरह से सौर ऊर्जा से जगमगाता गाँव ....प्रकृति के सर्व सुलभ,सहज उपलब्ध ऊर्जा के इस स्त्रोत का लाभ !प्रकृति की गोद में ,बियाबान के चहचहाते पंछियों के बीच,पेड़ों से छनती धूप ,गोबर से लीपे रंगोली से सजे आँगन !फिजा में ही सुर बसते हैं यहाँ की (मैं यहाँ वापस आना चाहूंगी ..खुद की तो दिली ख्वाहिश है ...आगे खुदा  की ख्वाहिश पर है! )हमने सबसे पहले वहां के छात्रों का शानदार परफॉरमेंस देखा और  तबला वादन से तो खासा प्रभावित हुए।उनकी सच्ची मेहनत झलक रही थी।फिर आगे हम उनके स्टाफ से मिले।इस स्कूल का प्रशासन एडम  चलाते हैं जो 7 सालों से भारत में रहते हैं .वहां मौजूद और भी  2-3 विलायती लोगों से मिले। मुझे लगा कि हम भारत के होकर भी ऐसे माहौल से वंचित हैं।और वो लोग यहीं के होकर रह गये ....कला और बच्चों से प्रेम और भारत की आबो हवा ...यहाँ की फिजा ने जो उन्हें अपने आगोश में लिया तो बस अब वे यहीं रह कर उन्हें सिखाते हैं,पढ़ाते हैं। आसपास के आर्थिक रूप से असक्षम परिवारों के बच्चों को न सिर्फ संगीत बल्कि बहुमुखी विकास की ,आवासीय   भरपूर सुविधा है यहाँ। इसके बाद सेल्को की कहानी सुनी। कि  क्यूँ भारत को दूसरे  ऊर्जा स्त्रोतों के अलावा सौर ऊर्जा का ही सबसे अच्छा विकल्प लेना चाहिए।सौर ऊर्जा के वितरण में और इसकी स्थायित्व ये कुछ प्रमुख चुनौतियाँ हैं उनके सामने।एक जो बात मुझे अच्छी लगी कि शिक्षा को कैसे उन्होंने सौर ऊर्जा से जोड़ा ....स्कूल जाओगे तभी घर पर रोशनी होगी। सेल्को की इस लम्बी यात्रा को  शब्दों में विस्तार देना मुश्किल है। 
इसके बाद हम मिले टो होल्ड हुनरमंदों से ....महाराष्ट्र के कोल्हापुरी चप्पलों को गढ़ते हैं ...और कैसे महिला सशक्तिकरण की पहल के पन्नों में भी खुद को दर्ज करा रहे हैं।पति-पत्नी दोनों मिलकर काम करते हैं फिर भी मालिकाना हक पत्नी का होता है।शिक्षा और अशिक्षा दोनों के साथ भी इनकी पीढियां इस कला को देश विदेश में नाम दिला रही हैं।
                                            

अगला गढ़ था,इन्फोसिस  बंगलुरु कैंपस .इतनी शांति,हरियाली, और ईको  फ्रेंडली वाहन,साइकल्स पर सवार एम्प्लोयीज़ देखकर बेहद सुकून मिलता है।प्रेक्षाग्रह में हमने इन्फोसिस की यात्रा सुनी।'' Be daring,be different !! ''..ये एक बात जो मैंने उनके डाक्यूमेंट्री फिल्म से खासकर के नोट की .कैसे विश्व की शीर्ष आई .टी .कंपनियों में से एक इन्फोसिस की बिनाह किन मूल्यों पर आधारित है।इन्फोसिस परिवार का हर सदस्य कितना महत्व पाता है।एक और बात काबिले गौर है कि उन्होंने कहा कि आप इसे मानव संसाधन विकास कहें (H.R.D.)कहें न कि टेक्नोलॉजी का विकास! उपभोक्ताओं की संतुष्टि,उत्कृष्टता ,ईमानदारी ,पारदर्शिता उनके कुछ आधारबिन्दु हैं।
फिर सुना हमने किरण मजुमदार शॉ को ....एक हिन्दुस्तानी औरत की संघर्ष से कामयाबी के शिखर पर पहुँचने की कहानी! डॉक्टर बनना चाहती थी पर आज बायोकॉन की सर्वेसर्वा हैं। ज़िन्दगी हारों से सीखकर आगे बढ़ना सिखाती है .लेकिन हारेंगे नही तो फिर जीतना कैसे सीखेंगे। तो ज़िन्दगी में हार बेहद ज़रूरी है। आज 40% शोधकर्ता महिलाएं हैं बायोकॉन में .पहले दो कर्मचारी सेवानिवृत्त होने वाले दो कार मेकेनिक थे ...और पहली सेक्रेटरी और कोई नही मिलने पर एक दोस्त! पहला दफ्तर घर के गेराज  में! 
फिर पैनल डिस्कशन -रेड्बस,फ्लिप्कार्ट ,ज़ेवामे और डैल के प्रतिनिधि मेहमानों से मिले। दरअसल लंच के बाद मैं ऊंघ रही थी (मानव स्वभाव !) तो ज्यादा कुछ तो लिख नही पायी।पर जो चीज़ मैंने अपनी डायरी के पन्नों में दर्ज की वो -आप को किसी भी चीज़ के बारे में जूनून और सच में उसे करने का ज़ज्बा होना चाहिए।इस बात से कोई फर्क नही पड़ता कि आप तकनीकी रूप से दक्ष है या नही।

                                             ---------------- स्पर्श चौधरी