शनिवार, 26 जनवरी 2013

देश हमारा



गण हैं हम इस गणतंत्र के , तंत्र हिला के रख देंगे
अन्याय और दुर्भाव के सब बीज मिटा के रख देंगे
चाहे दुश्मन बाहर हो या घर के भीतर हो विभीषण
इस बार न छोड़ेंगे हम उनको देंगे ऐसा दंड भीषण
कि, काँप उठे ये धरा और कांप उठे अम्बर सारा
बस गूंजे ज़ग में देशप्रेम और देशप्रेम का ये नारा
झंडा ऊँचा रहे हमारा ! सबसे प्यारा देश हमारा !
झंडा ऊँचा रहे हमारा ! सबसे प्यारा देश हमारा !
                                 
                                                           ---------- शक्ति शर्मा 

गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं ??

मेरा भारत महान ! ...नही मैं ये तो बिलकुल नही कहूँगी ....पर हाँ मैं अपने देश से प्यार बेहद करती हूँ . और जब हम अपने देश से प्यार करते हैं तो उसके अच्छे और बुरे पक्ष दोनों ही अपने हुए न! जो हमारा है,उसे हमें ही तो देख भालना पड़ेगा न। जैसे अगर परिवार का कोई सदस्य गलत रास्ते पर चला जाए तो हम उसे कोसते ही तो नही रहते पूरी कोशिश करते हैं की वो सुधर जाए ....तो ठीक वैसे ही भारतीय होना मेरी पहचान है ....एक वैविध्य लिए हुए देश जिसमे आज दरारें पड़ गयी हैं,उसे भरना हमें ही होगा,सरकार को क्या करना है वो तो बेहद आवश्यक है ही। आज ही मेरे पापा मुझसे कह रहे थे कि अब तो भगवान् ही मालिक है बेटा इस देश का।फिर बोले और अब सब कुछ तुम नयी पीढ़ी के बच्चों के ही हाथ में ही है ...बचा लो देश की डूबती नैय्या को ! तो मैं चिंतन कर रही थी कि अब सच में हमे ही कुछ करना होगा।देखिये न युवा शक्ति ने ही स्त्री अधिकारों के प्रति और देश की कानून व्यवस्था को सही करने के लिए जो हल्लाबोल किया है उसका असर कुछ तो हुआ है। माना एकदम सब कुछ नही बदलेगा पर कुछ बेहतर तो होगा।मुझे लगता है कि चौटाला के घोटाले की बात हो ,राहुल की ताजपोशी हो,गडकरी की धमकी हो,तेज़ी से बढ़ते महिलाओं के प्रति अपराधों की हो या, फिर पुलिस की सुस्ती और संकीर्ण मानसिकता और उदासीनता हो,या और कोई मुद्दा हो देख के गुस्सा तो बेतहाशा आता है पर जो भी हो अब इन नेताओं को ,धार्मिक संतों,गुरुओं को बयानबाजी करनी बंद होगी ,कुछ कर नही सकते तो कम से कम चुप तो बैठो। ....जस्टिस वर्मा की कमेटी ने जो भी सुझाव दिए उसको शब्दशः पालन करलें ये,कुछ इन्हें कुर्सी तक पहुंचाने वाले हम लोगों की आहें भी इनके कानों तक पहुँच जायें और ये उसे अनसुना न करें,सपनों के भारत की फेहरिस्त तो काफी लम्बी है पर उम्मीद है मैं इन सपनों को पूरा करने में कुछ पुख्ता कर पाऊं,और हो सके तो आप भी करो,क्यूंकि एक बात ध्यान तो रखना ही है अब वातानुकूलित दफ्तर में बैठके कंप्यूटर पर काम करके ही सिर्फ देश नही चलता अब हमारे परिवार -भारतीय परिवार के लोगों को हमारी ज़रुरत है ! निराशा ,संघर्ष और रोड़े तो कदम कदम पर आएंगे ही पर अगर देश और अपने लोगों के लिए कुछ करना है तो चुप बैठ के काम नही चलेगा .आज ही मैं भारतीय संविधान का प्रॆअम्बल पढ़ रही थी तो पढ़कर काफी दुःख हुआ कि हर एक अंश की इतनी धज्जियाँ उड़ रही हैं आज देश में ,शायद संविधान को पुनः परिभाषित करने की या पुनः याद दिलाने की ज़रुरत है हरेक को !
उम्मीद है कि आगामी वर्षों में राष्ट्रीय त्योहारों के इन अवसरों पर हरेक देशवासी का दिल खुश हो,आत्मा संतुष्ट हो, और वो भी इसकी खुशियाँ वैसे ही मनाये जैसे हम अन्य त्यौहार सब मिलके मनाते हैं,
इसलिए देश ,देशवासियों, को एक अच्छे लोकतंत्र ,सच्चे लोकतंत्र को पाने के आगामी दिवस की हार्दिक 'शुभ' कामनाएं! क्यूंकि 26 जनवरी 1950 को तो सिर्फ उसका शरीर अवतरित हुआ था आत्मा तो कबकी चूर चूर हो चुकी है। जब हम सब मिलकर उस आत्मा को पुनः प्रकट कर लेंगे तब मैं दिल से कह पाउंगी गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं !
   
------------ स्पर्श चौधरी 

गणतंत्र दिवस!!


 

आज छब्बीस जनवरी है, और ये दिन भारत के संविधान के पहली बार लागू होने का दिन है, पर आज देश की हालत देखकर लगता नहीं कि यहाँ नियमों और कानूनों की क़द्र करने वाले ज्यादा लोग  रह गए हैं। पर किसी महात्मा ने कहा था " जो बदलाव तुम दुनिया में देखना चाहते हो, वो बदलाव खुद बनो" तो आज हम कम से कम खुद से तो ये वायदा कर ही सकते हैं कि हम नियमों का सम्मान करेंगे,  उनका पालन करेंगे; फिर वो चाहे सड़क पे चलने का नियम हो, या शिक्षकों  का लगाया हुआ  कक्षा में बात न करने का नियम। और अगर हम सब अपने अपने हिस्से का इतना काम करते गए तो एक दिन ज़रूर भारत में नियम व्यवस्था बहाल होगी।

गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं !

सत्य मेव जयते!!

(आज देश के जो हालात हैं उनसे कोई अनभिज्ञ नहीं | सफ़ेद झूठ  को सच बना कर परोसा  जा रहा है और हम लाचार से सब देख सुन रहे है| सच की जीत अब सिर्फ फिल्मो में होती है, कई बार वह भी नहीं | ऐसे में एक आम आदमी आखिर क्या कहे ? क्या करे ? इस प्रश्न का जवाब भी एक आम आदमी ही दे सकता है ... तो झांकिए अपने भीतर, आप लड़ना चाहते है या डर-डर के मरना चाहते है ... )
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इस देश में सच के रखवालों के नाम 
एक युवा का पैगाम  

सत्य वचन की रीत जहाँ थी, जन-मानस की भाषा मे,
प्राण जाए पर वचन न जाएं, था मानव की परिभाषा में |
जहाँ राम ने और कृष्ण ने, असुरों का संहार किया,
यदि शीश है उठा पाप का, मस्तक पर प्रहार किया |
उसी देश के वाशिंदे, अंधी परिपाठी पर झूल गये ,
स्वाभिमान तो बचा नहीं गाँधी की लाठी को भूल गए | 
अर्थ नहीं समझते तो क्या, गर्व से हम कहते ...
सत्य मेव जयते, हाँ भैया ! सत्य मेव जयते ||  


गांधी के आदर्शों पर जहां कालिख पोती जाती है,
भूखे बच्चे हर रात जागते, सरकारे सोती जाती है | 
मातृभूमि की दशा देख, शूर पृथ्वीराज शर्मिंदा है,
जहाँ वीरता थी बसती , बस जयचंद वह अब जिंदा है |
भारत माता का चीर हरण जहां श्वेत दरिन्दे करते हैं 
वो रोती चिल्लाती है, हम तमाशबीन बन हँसते हैं |
अरे ! रावण यहाँ भोग करते, और राम रोज़ मरते ...
फिर भी हम कहते ... सत्य मेव जयते, हाँ भैया ! सत्य मेव जयते ||  



जहाँ हाथ में वेद-कुरान, पर दिल में खंज़र होते है,
इश्वर-अल्लाह की शह लेकर , खूनी मंज़र होते है |
जहाँ धर्म के रखवाले, करते इंसानों की खेती,
और अब्दुल से प्यार नहीं कर सकती हिन्दू की बेटी |
यहाँ एकता सहिष्णुता  के टुकड़े-टुकड़े कर डाले,
एक बंटवारा तो कम था, आओ सौ बटवारे कर डाले, 
जन्म-भूमि ईश्वर की है, पर इंसान यहाँ जलते ,
फिर भी हम कहते ... सत्य मेव जयते, हाँ भैया ! सत्य मेव जयते ||  



जहाँ मुलजिम घोटालों के, पर्वत पर जा बसते हैं,
ख़ून गरीबों का वे चूस, अपनी थाली को भरते हैं |
मंत्री बन बैठे संसद में , आरोपी गद्दार सही,
लड़ना हम सब भूल गए, नहीं बचा खुद्दार कोई |
2G 3G के प्रपंच में, अगर कभी फंस जाते है ,
खातिर खूब होती तिहाड़ में, मुर्ग-मुस्सलम खाते है |
अरे ! इस देश में कातिल-हत्यारों के, बुत बना करते ...
फिर भी हम कहते ... सत्य मेव जयते, हाँ भैया ! सत्य मेव जयते ||  



अगर जीत होती सत्य की, तो जेसिका क्यों मरती ?
बच्चों की नंगी लाशें, गड्ढों में है क्यों सड्ती ?
अफज़ल-कसाब क्यों फाँसी के तख्ते से बचते जाते है ?
और बेगुनाह क्यों लोकल के डब्बों में मरते जाते है ?
कभी ताज तो कभी न्यायलय, संसद तक का मान नहीं,
आज शाम क्या घर लौटूंगा इसका भी कोई  भान नहीं |
यहाँ जीने की सजा नागरिक जीवन भर सहते, 
फिर भी हम कहते ... सत्य मेव जयते, हाँ भैया ! सत्य मेव जयते ||  



लेकिन भारत वर्ष अभी जिंदा है, उठना और लड़ना होगा, 
देश बदलने भारत की , जनता को ही बढना होगा |
 इतिहास गवाह है , जब जब संकट के बादल अंधेर छाए है,
कभी राम , कभी गांधी, कभी अन्ना परिवर्तन लाए है |  
विश्वास हमें करना होगा, निश्चय मन में करना होगा, 
परिवर्तन की आंधी को संग लेकर चलना होगा |       
अरे ! खंडहर से महल बनाने वाले, वीर यहाँ बसते ...
इसीलिए कहते हम .... सत्य मेव जयते, सत्य मेव जयते ||  

--------- रिषभ जैन 

सोमवार, 21 जनवरी 2013

जागृति : यात्रा यादों भरी (भाग दो)


 
पहले दिन हमें 22 समूहों में बांटा गया .हमारे समूह-f  के सदस्यों से और मेंटर से परिचय हुआ .सभी अलग अलग पृष्ठभूमि और संस्कृति से आये  -तो अब हम भी गर्व से कह सकते हैं कि हमारे ही जैसे उद्देश्यों वाले और कुछ करने की जिद लिए हुए लोग हमारे मित्रों का अब ये समूह सारे  विश्व में फैला है। 

दिन-दूसरा -क्रिसमस का दिन हमने रेल में ही बिताया .इससे पहले कुर्ला स्टेशन  पर ही क्रिसमस मनाया .मुझे यकीन है कि ऐसा अनोखा क्रिसमस किसी ने भी नहीं मनाया होगा-450 के बड़े परिवार के साथ!

मंज़र है कुछ निराला सा -भावनाएं अपने पूरे उफान पर हैं।सफ़र तो अभी शुरू हुआ था .हर एक पड़ाव ही मानों मंजिल नज़र आ रही हो। बाहर  खिड़की से झाँकने पर लगता है कि जब समंदर में गोते लगाने में उसकी गहराईओं में खोने में,लहरों के साथ अठखेलियाँ करने में इतना मज़ा आ रहा हो तो किनारे तक पहुँचने की जल्दी किसे है!!  अपने सुविधापूर्ण जीवन से बाहर निकलकर उद्यम और उद्यमिता के ज़रिये  नवीन भारत  का एक नया ढांचा तैयार करने का अद्भुत सफ़र है यह।( मुझे यहाँ एक और बात शशांक सर के उद्बोधन की यहाँ याद आ रही है कि उद्यमिता एक बड़ा ही विस्तृत क्षेत्र है-आप एक उद्यमी नौकरशाह भी हो सकते हो -बस कुछ  नया करने के लिए ,सीखने के लिए अपने कानों और मस्तिष्क के दरवाज़े और खिडकियों को नए विचारों के लिए खोल दें।अपने उद्यमी हाथों को भी बख्श दें .-क्यूंकि

                       जब मंजिल बिलकुल उजले पानी की तरह साफ़ नज़र आये
                      और उसे पाने की चाहत और पागलपन सर पर सवार हो
                      तब ही हासिल होता है इस दुनिया में कुछ ....

और ये बात तो हर एक रोल मॉडल से मिलकर और भी साफ़ होती जा रही थी। कि कुछ करने का जूनून,आत्मविश्वास हो तो आर्थिक समस्याएं और अन्य बाक़ी मुद्दे भी धीरे धीरे हल हो जायेंगे।


आज रेल में पहला दिन था तो -ख़ास रूप से बनाये गये बाथरूम्स ,कम्पार्टमेंट जो इस रेल के बड़े से चलित घर
का हमारा कमरा था जिसे हमें और 4-5 लोगों के साथ बांटना था जोकि मुझे लगता था बेहद प्यारा था -से परिचय हुआ।
नेहा,नेहा,दिव्या,अमृता ,पल्लवी,एलिज़ाबेथ,संजना  मेरे सह -कम्पार्टमेंट यात्री थे।अगले कम्पार्टमेंट में भी हमारे ही समूह के लोग थे .और वहीँ हमारी मेंटर भी थी तो औपचारिक और अनौपचारिक चर्चाएं वहीँ हुआ करती थीं।

मैंने सपने में भी नही सोचा था कि  चूंकि मैं थोड़ी अंतर्मुखी किस्म की हूँ तो इतनी जल्दी दोस्ती कर लुंगी .
पर मुझे याद है कि मैं बीमार हो गयी थी , कोई मेरे सर पर बाम लगा रहा था- कोई दवाई दे रहा था तो कोई मेरे लिए खिचड़ी का इंतजाम कर रहा था। इतना प्यार,केयर और सहयोग सालों की गहरी दोस्ती में ही देखने को मिलता है पर यात्रा की बात ही निराली थी!! :) :) मुझे बड़ा भावुक सा महसूस हो रहा है।

                                           ---------------- स्पर्श चौधरी 

शनिवार, 19 जनवरी 2013

चीटियों की बस्ती



http://news.stanford.edu/news/2003/may7/gifs/Ant_Chat2_300.jpg

एक सूखी हुई बारिश की छोटी सी धारा के दोनों और चीटियों की दो बस्तियां थी. मानसून के दरम्यान दोनों बस्तियों की चीटियाँ दूर रहती. बारिश के ख़त्म होते ही दोनों बस्तियों की लड़ाकू चीटियाँ एक दूसरे के नजदीक अपने संगीने तान लेती . चीटियों मैं वैसे तो बहुत तरह की चीटियाँ थी. लेकिन मुख्यत: तीन तरह की चीटियाँ थी. हुकुमती  चीटियाँ, लड़ाकू  चीटियाँ और आम चीटियाँ. कहने को तो दोनों बस्तियों मैं चीटीतंत्र था, जहाँ हर चीटी के चीटीधिकार बराबर थे . लेकिन बड़ी ही खूबसूरती से हुकुमती चीटियाँ, कभी कूट तो कभी फुट नीति से  आम चीटियों पर शासन करती और बहुत सारा माल पानी सिर्फ हुकुमती चीटियाँ चट कर जाती . बचा हुआ के आधे में  रसद पानी लड़ाकू चीटियों को अपने स्वास्थ्य एवं कुरबानी के लिए तैयार रहने के लिए मिलता. बाकी बचे हुए में  आम चीटियों को जिनकी संख्या सबसे ज्यादा थी गुजरा करना पड़ता. इधर कुछ समय से दोनों ही बस्तियों के आम चीटियों  मैं काफी आक्रोश पाया गया. वे सियासती या हुकुमती  चीटियों से हिसाब मांगना शुरू कर दे रही थी. शुरू में आम चीटियों को दबाने के लिए लड़ाकू चीटियों का प्रयोग किया गया. फिर उनके बीच में मतभेद करने की कोशिश की गयी . लेकिन हर २ या ३ दिनों के बाद फिर किसी ना किसी मुद्दे पर आम चीटियाँ हुकुमती चीटियों से हिसाब मांगने लगती.
 इन सबसे परेशान होकर दोनों तरफ की हुकुमती चीटियों ने एक गहरी चाल चली. एक दिन दोनों बस्तियों के कुछ लड़ाकू चीटियाँ को मरा हुआ पाया गया. अब दोनों तरफ की  आम चीटियाँ, हुकुमती चीटियों के साथ हो गयी और दूसरे बस्ती पर जल्द से जल्द आक्रमण करने की बात कही  जा रही थी. आम चीटियों के सारे मुद्दे और बेचेनी ठन्डे बस्ते में पड़ गए थे. दोनों तरफ से खिलाडी , कलाकार एवं अन्य आम चीटियों को वापस बुलाया या भेजा जा रहा था.
शुक्र था, तब तक बारिश हो गयी . धारा के प्रवाह ने दोनों और के लड़ाकू  चीटियों को वापस लौटने पर मजबूर किया. हुकुमतीं चीटियों ने फिर से शांतिवार्ता का स्वांग रचाया. दोनों और के चीतापति , चीतामंत्री एक दूसरे की बस्ती मैं अपने परिवार सहित पिकनिक मनाये , अच्छा अच्छा खानापीना खाकर , नाच गाना देख कर लौट आये. इस ख़ुशी के मौके पर एक दूसरे की बस्ती मैं गलती से घुस आये कुछ चीटियों को छोड़ा गया. कुछ को रख लिया गया , जिन्हें विश्वास बहाली के नाम पर आने वाले सालों मैं छोड़ा जायेगा.
दोनों बस्ती के ज्यादातर आम  चीटियों को फिर से कुछ समझ में  नहीं आ रहा है  .
                                            
                                                  ----------    नेपथ्य निशांत


रविवार, 13 जनवरी 2013

लोग...




जब खुद के बैठने का ठौर हो जाये
तो दुसरे के घर यूँ ही जला देते है लोग

जिंदगी में जिसने बस इज्ज़त कमाई
उसकी इज्ज़त कौड़ियों में बेच देते है लोग

यतीम जान जिन पर कभी करम किया
मुझे देख अब आँखें चुरा लेते है ये लोग

ख़ुश हूँ मै लेकिन हरदम ये भी मुनासिब नहीं
ग़म छुपाने के लिए भी मुस्करा लेते है कुछ लोग ।।


                                                  ---------- विकास पाण्डेय 

जागृति : यात्रा यादों भरी (भाग एक )

एक यादगार दिन मेरे जीवन का -उर्जा और जोश से लबरेज ,परिवर्तन की लहर का एक हिस्सा बनने के उत्सुक,जुनूनी हम 450 युवा जो देश भर के 24 राज्यों के साथ साथ 13 देशों के 27 अंतर्राष्ट्रीय यात्री हैं टाटा सामाजिक विकास संस्थान ,चेम्बूर में लॉन्चिंग समारोह में -भारतीय संस्कृति की खूबसूरत छटाओं का अवलोकन .जागृति परिवार की-कार्य यात्रा ,उद्देश्य ,परिवार के सदस्यों से परिचय ,उनका परिवार से जुड़ाव ,सब को जानना ;वातानुकूलित कक्ष में उंघते लोगों को (ये तो हम हमेशा करते ही हैं पुनः एनर्जी का रिफिल करने का काम किया सुन्दर और भावपूर्ण जागृति गीत ने जिसे प्रसून जोशी ने कलमबद्ध और बाबुल सुप्रियो ने लयबद्ध ,आदेश श्रीवास्तव ने संगीत निर्देशन किया है ....ये इन दिनों मेरे अन्दर ज़ज्ब हो गया है ....जब भी गुनगुनाती हूँ ,रोंगटे से खड़े हो जाते हैं और यादें ताज़ा हो जाती हैं -                                                                                    

http://youtu.be/2xYJsMtMns8

आई .आई .टी .दिल्ली के भूतपूर्व छात्र शशांक मणि त्रिपाठी की इस नयी सोच की शुरुआत हुई थी 1997 में आज़ादी के 50 सालों के जश्न पर 'आज़ाद भारत की रेल यात्रा ' से जो बाद में 2007 में 'उद्यम के ज़रिये भारत निर्माण ' पर आधारित हो गयी।वन्दे मातरम-इस धरती को सुजलाम सुफलाम बनाने के लिए हम निकले हैं सच्चे भारत की यात्रा पर या आत्म अन्वेषण की यात्रा पर -गाँधी के दांडी मार्च से प्रेरित होकर उन्ही के पदचिन्हों पर चलकर ही 'भारत ' की खोज के लिए शुरुआत हुई थी इस यात्रा की .

इसके बाद हम मिले अपने प्रथम रोल मॉडल से -डब्बावाला के प्रमुख से -



घर से दूर रहने वालों से अच्छा कौन घर के बने खाने की महक की महत्ता समझ सकता है ! मुंबई एक महानगर -हर वक़्त भाग दौड़ में लगा रहने वाला -इंसान को अपने खाने की भी फुर्सत नही ...!
ऐसे में कोई तो है यहाँ जिसे उन तमाम लोगों के भोजन के प्रबंध की चिंता है ...डब्बावाला ! जिससे तकरीबन 2 लाख लोग रोज़ लाभान्वित होते हैं .(2.5 मिलियन -मैन्युअल ट्रांजिट है )-आज तक कोई गलती नही हुई ...या बोले तो त्रुटि की दर 1 इन 16 मिलियन है।
इस तकनीकी ज़माने में बिना किसी तकनीक के सहारे के रोजाना समय पर डब्बे ले जाना और वापस लाना आसन काम नही है - ऐसा प्रबंधन वो भी बिना किसी एम् .बी . ए के ही नही सभी सदस्य अशिक्षित या
अतिअल्प शिक्षित हैं तब ये कर रहे हैं। 114 साल पुराना ये ट्रस्ट लगातार काम करता रहता है -इसमें कोई सेवानिवृत्ति की उम्र नही है .हर एक सदस्य को 40 उपभोक्ताओं के लिए डब्बे लाना लेजाना होता है। लोकल ट्रेन पर ,साइकल्स ,हाथ ठेला ,पर हाथों में 60-65 किलो के टिफ़िन बास्केट्स लिए सर पर सफ़ेद गाँधी टोपी-(ट्रेडमार्क ) लगाये अगर आपको कोई दिखे तो वो डब्बावाला के ही सदस्य हैं . एक बारगी एक घडी ख़राब हो सकती है -पर डब्बावाले नही! आज तक अपनी अंदरूनी वजहों से कोई हड़ताल नही-इनके भी अपने उसूल हैं- काम के दौरान शराब नही,पहचान पत्र और गाँधी टोपी पहनना -नही मानने पर जुर्माना भरना होता है
एक कोडिंग सिस्टम जो माशेलकर जी(प्रमुख) के ही दिमाग की उपज है के अनुसारकाम होता है वरना इतने बड़े मुंबई में 4 लाख डब्बों को लेजाना और वापिस लाना आसान नही है -
चाहे कोई ही क्यूँ न आ जाये वो रोज़ के काम में बाधा नही बन सकता-प्रिंस चार्ल्स ने जब उनसे मिलना चाहा तो उन्होंने कहा कि वे पांच सितारा होटल में नही आयेंगे क्यूंकि काम का वक़्त है-तो उन्हें उनसे मिलने फूटपाथ पर ही आना पड़ा -बड़े गर्व के साथ बताते हैं वे कि आज बर्मिंघम में कोहिनूर के बाजू में उनका डब्बा और सफ़ेद टोपी रखी गयी है .50 प्रभावशाली व्यक्तियों की फेहरिस्त में शामिल हैं वे -गिनीस बुक में दर्ज आदि से बढ़कर उनका काम है-प्रदुषण हीन ,बिना किसी निवेश के ,शांतिपूर्ण तरीके से ,99.99% सेवा ,100% उपभोक्ता की संतुष्टि उनकी विशेषताएं हैं


सचमुच उस एक घंटे में उन्होंने हमें वो सिखा दिया जो शायद किसी प्रबंधन के संस्थान में भी कोई क्या ही सिखाएगा! मंत्रमुग्ध कर दिया उन्होंने और उन के काम ने -लगा कि बड़ी बड़ी डिग्री फीकी पड़ गयी उनके सामने !!!


                              -------------------- स्पर्श चौधरी 










शनिवार, 12 जनवरी 2013

सख्त जांच



सब जगह
शोर है ,
संदेह है .
मन के अन्दर
ही अन्दर
कई तूफ़ान हैं ,
एक इस्तीफे के
मांग है  .

पर बिल्ला  तो
साफ़ कहता है,
मलाई का कटोरा
नहीं छोडूंगा !
इस्तीफा ! नहीं नहीं
वो तो नहीं दूंगा .

एक काम हो
सकता है ,
कार्यवाही होगी ,
इस सबके के पीछे
सख्त जांच होगी .

जांच ? सख्त ?
ये तो वही है ना
जो ढीले लोग करते
हैं , उबासियाँ भरते हुए.
वो ख़त्म हो जाते हैं ,
पर ये जांच ..ये
ख़त्म नहीं होतीं .

सख्त जो ठहरीं !

                 --------- दीपशिखा वर्मा 

अतिथि देवो भवः !

जैसे कहते हैं न ज़िन्दगी में सीखने के लिए कोई वक़्त नही होता......हर व्यक्ति,या कहें जीव .....घटना.....स्थान ,यात्रा;कुछ न कुछ सिखा देती है .....इसी यात्रा के दौरान फिर कुछ ऐसा ही हुआ....कि भगवान् महाकाल के दर्शन करने के बाद....और ..ओम्कारेश्वर से आगे.....किसी सुनसान इलाके में हमारी कार खराब हो गयी.....आंधी -तूफ़ान का मौसम हो रहा था....पर...भगवान् की कृपा से....पास  में दो घर दिखाई दिए......तो जान में जान आई..... फिर तो जो हुआ....उससे मुझे अतिथि देवो भवः वाली बात चरितार्थ दिखाई दी....जिसपर से शहरों में रहने के बाद थोडा विश्वास डगमगा जाता है जहाँ लोगों के पास अपने अलावा औरों के लिए वक़्त ज़रा कम ही होता है....पर...यहाँ.....दरअसल रात के ९-१० बज रहे थे....और....इस समय पर किसी मेकेनिक का मिलना मुश्किल था और....कोई उपाय भी नहीं था.....फिर भी.....गाँव के नवयुवकों ने पूरी कोशिश की जिन्हें इसकी जानकारी थी.....पर जब कुछ नही  संभव हो पाया तो....उनमे से एक ने हमें अपने घर में ही रात बिताने का सुझाव या कहें स्नेहल आग्रह किया.....हमारे पास भी और कोई उपाय नही था.....तो हम भी तैयार हो गये....और घर पर रात्रि विश्राम का यह अनुभव तो जैसे अद्भुत था.....वो एक कृषक परिवार था....हमारे बहुत मना करने के बाद भी...खुद चारों ज़मीन पर सोये....और हमें चारपाई पर सुलाया.....हम तो थके थे....बड़ी ही....शांति से सोये.....यही नही उनके बच्चे टीवी देख रहे थे.....तो मैं और मेरी बहन भी देख रहे थे.....तो बस रिमोट हाथ में देकर खुद चले गये....हमें ऐसे लग रहा था कि हम घर में हैं......इतनी आत्मीयता के साथ रहने के बात हम अगले दिन दोपहर में वहां से निकल गये.....पर अगले दिन उन नवयुवकों में से एक जिन्होंने पापा के साथ गाड़ी को ठीक करवाने ले जाने में काफी मदद की....और जिनके यहाँ हमने रात्रि विश्राम किया....उनके बच्चों का फ़ोन आया कि आप लोग अच्छे से पहुँच तो गये थे....न....और....कहने लगे अंकल आप तो हमें शर्मिंदा कर रहे हैं......दरसल पापा ने उन्हें कुछ पैसे दिए थे मदद के धन्यवाद् स्वरुप .....तो कहने लगे....गाँव में ऐसा ही होता है अंकल....और आप लोग मुसीबत में थे....तो इंसानियत के नाते तो ये बनता ही है.....मुझे लगा....कि ये इंसानियत हम शहरी शायद भूल रहे हैं....खैर ...हम वापस आ गये इस आत्मीय अनुभव के साथ.....और भगवान् को धन्यवाद करते हुए.....क्यूंकि उस सुनसान जगह पर जैसे वो परिवार हमारे लिए भगवान् की तरह था.....!!...

                                                   --------------- स्पर्श चौधरी