गुरुवार, 15 अगस्त 2013

जलियांवाला बाग़ : इतिहास के झरोखों से 

 स्वतंत्रता दिवस पर विशेष

१३ अप्रैल १९१९ के पहले जलियांवाला बाग़  अन्य किसी सामान्य बाग़ की तरह ही था. स्वर्ण मंदिर के नजदीक स्थित इस बाग़ का नाम जलियावाला इसके पुराने मलिक के नाम पर है . यह बाग़ चारो तरफ से ऊँची दीवालों से घिरा है, जिसके  बाहर निकलने के लिए सिर्फ एक तरफ का संकरा रास्ता है. इस बाग़ में एक कुआँ एवं एक छोटा सा मंदिर भी है. इस वर्ष के  ग्रीष्मावकाश  में मुझे इस तीर्थ के दर्शन का  अवसर मिला.


आज यहाँ बेहद शांति है. आसमान में सूरज निखर आया है . बड़ी संख्या में लोग इस बाग़ में घुमने आये हैं.  विश्वास ही नहीं होता यहीं वह जगह है , जहाँ कभी जनरल डायर संकरे रास्ते से कुछ सैनिको के साथ आ कर एक निहत्थी सभा कर रहे लोगों पर गोलियां चलाता है.


जलियाँवाला बाग़ में प्रवेश का संकरा रास्ता




जरा कैलेण्डर को पीछे घुमा कर देखते हैं.  
अप्रैल १९१९ , सारे देश की तरह अमृतसर शहर में भी महात्मा गाँधी के आह्वान पर सत्याग्रह का आन्दोलन जोड़ पकड़ने लगता है. ६ अप्रैल १९१९ को अमृतसर में एक आम हड़ताल रखी जाती है. आज  ९ अप्रैल रामनवमी का दिन है. सत्याग्रह के समर्थन में एक बड़ी रैली निकाली जा रही है. इस रैली के नेता डॉ सैफुदीन किचलू एवं डॉ सत्यपाल को पुलिस गिरफ्तार करके धर्मशाला भेज देती है.


 डॉ सैफुदीन किचलू 

डॉ सत्यपाल 
अगले दिन कुछ लोग उप कमिश्नर से मिलकर इन दोनों के रिहाई के लिए ज्ञापन देना चाहते है. लेकिन इनके ऊपर गोलियां चला दी जाती है. शहर में हिंसा भड़क उठती है, बेंक एवं रेलवे स्टशन को निशाना बनाया जाता है. फिर १२ अप्रैल को दो अन्य स्थानीय नेताओ चौधरी बग्गामल और महाशय रतनचंद को गिरफ्तार किया जाता है. शहर के नागरिक प्रशासन की जिम्मेवारी ब्रिगेडियर जनरल आर ई अच् डायर को दे दी जाती है. जो शहर में कफ्यू लगाता है एवं अपने सैनिको को किसी को सड़क पर देखते ही गोली मारने का आदेश देता है. लेकिन इस बात की सूचना का प्रचार नागरिको के बीच नहीं कराया जाता है.
१३ अप्रैल १९१९ , आज बैशाखी का दिन है. जालियावाला बैग में शाम में एक आम सभा हो रही है.  सूर्यास्त होने में कुल १० मिनट के करीब शेष रहे होंगे. लेकिन तभी जनरल डायर १५० सैनिको के साथ यहाँ दाखिल होता और अंधाधुंध गोलियां चला देता है. लोग जान बचाने की लिए जमीन पर लेट रहे है. तो कोई आवेश में आकर आगे बढ़ रहा है. कई लोग कुएं  में कूद कर जान बचाने की कोशिश कर रहे हैं. 
शहीदी कुआँ 
लेकिन तभी गोलियां उधर चलने लगती है. लोग दीवारों पर चढ़ने की कोशिश कर रहे हैं,
दीवारों पर गोलियों के निशान 
  डायर उन दीवारों की तरफ अपने सैनिको को इशारा कर रहा है. गोलियां चलती है, लोग गिर जाते हैं. चारो तरफ से चीखें हैं, क्रंदन हैं , लाशें हैं. सूर्यास्त हो चूका है . करीब ४०० लोग दम तोड़ चुके हैं .शहर में कफ्यू है, लोग अपने मित्रो को इलाज या  अंतिम संस्कार के लिए भी नहीं ले जा पा रहे हैं.

केलेंडर को फिर समेटते हैं, और वर्तमान मैं लौटते है.
भाई साहेब थोडा सा हतियेगा , एक तस्वीर निकालनी है.
जरुर साब जी ..
शहीद स्मारक 

हँसते खिलते बच्चे एवं उनके परिवार शहीद स्मारक के  नजदीक जा कर फोटो के लिए पोज दे रहे है.  बाग़ के एक और एक छोटा सा संग्रहालय है, जहाँ इस घटना, उस समय के समाचार पत्रों में इसके कवरेज एवं तात्कालिक परिस्थितयों के बारे में विस्तार से  लिखा है. रविन्द्रनाथ टगोर द्वारा सर की उपाधि वापस करने से लेकर चर्चिल के ब्यान तक मौजूद है.  लेकिन मुझे दुःख इस बात का लगा, बहुत खोजने पर भी मुझे कोई ऐसा दस्तावेज या डायरी देखने को नहीं मिला ,जहाँ शहीद हुए सभी लोगों का नाम या तस्वीर उपलब्ध हो . हाँ यदा कदा कुछ संस्मरणों में कुछ शहीदों की तस्वीरें एवं उनकी कहानियां जरुर लिखी है. यह सही है, उनकी शहीदी किसी नाम या परिचय का मोहताज नहीं , वो सब अपने वतन पर मिटने वाले लोग थे. लेकिन  हमारी जनतांत्रिक सरकार इस दिशा में थोडा पहल तो कर ही सकती है. 

सग्रहालय में बनी एक पेंटिंग 

- नेपथ्य निशांत 

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