इस दफ़ा गोष्ठी में हमारे साथ थे राजशेखर जी, जिन्होंने तनु वेड्स मनु के ज़रिये हमें बहुत उम्दा गाने दिए और आगे भी कई फिल्मों के लिए गाने लिख रहे हैं. इस मुलाक़ात में हमने उनके द्वारा रचित बहुत खुबसूरत कविताएँ सुनीं, जिसमें कुछ कविताओं को सांझा कर आइये गोष्ठी को कुछ मुकाम आगे पहुँचाया जाए.
यह एक हाइकू मैथली में-
लीपल ऐंगना
जों लिखल हाथ
नभकी कनिया
खाय धीपल भात…
काली काली
ख़ाली ख़ाली
झींगुर कुतर जाया करती थी
फिर,
तुम्हारे सपनो ने रातों को खबर दी
कि तुम आ रहे हो- सच में..
…
रात ने शाम से कुछ वक़्त उधार मांगे
सूरज से गुज़ारिश की कि वो जल्दी डूबे
चाँद से कहा “तुम रोज़ आ जाओ न प्लीज़ “
जुगनुओं की रानी को बीते सालों का वास्ता दिया
तब लाख जुगनुओं से ज़मीं पर सितारे छिड़क दिए
अब बावली रात फाख्ते की तरह कूदती रहती है-
रात रानी की हल्की डालियों से,
रेडियो सीलोन पर आती,
तलत महमूद की थरथराती भीगी आवाज़ तक..
….
घबराहट और इंतज़ार,
इंतज़ार…
इंतज़ार और घबराहट,
….
कल नौ चाँद बीते..वो नहीं आये..
..अब चाँद, सितारे, जुगनू, सूरज
मेरी रातों को ताना देते हैं-
नौ चाँद बीते..वो आये नहीं ?
ठग..चोर.. भ्रष्टाचारी…
ये सड़कों पर के शब्द हैं..
घर के बाहर बोले जाने वाले – कैजुअल से शब्द
पान खाने के बाद थोड़ा चूना और पीपरमिंट माँगने जैसा होता है ये सब बोलना..
हम इन शब्दों को खर्च आते हैं बाहर
और फिर हम घर लौटते हैं
पीक थूकते हुए
बिजली के खंभे पर..
वही शब्द -
रात में सड़कों पर पीक सने और घिनौने हो जाते हैं
रात भर शराब की बंद दुकानों के सामने बूँद बूँद गिरगिराते
फिर बहकर चले जाते हैं
अख़बारी पन्नों पर
सुबह
चाय के वक़्त
घरों तक पहुच जाते हैं ..
चोर ..ठग ..भरषटाचारी
जिन्हें हम सड़कों पर छोड़ आये थे..
2…
वो आक्ण्ठ डूबा है
“उसमें”
जिसे तुम पाप कहते हो
और वो मौका
उसके पास है बहुत मंहगी परफ्यूम
जिसके फाहे वो कान मे रखता है
वो तुम्हें ना सुनता ना सूंघता है…
3…
भगवान दसावतरी
होते हैं
हर युग में “प्रकट” होते हैं
राक्षस और भ्रष्टाचारी नहीं
वो तो हमारी तुम्हारी तरह
माँ को तकलीफ़ देते हुए
दाई के हाथों घर
या सदर अस्पताल में पैदा होता है..
खिलौने के लिए किल्लोल करते हुए
वो एक दिन जब उठा लता है पड़ोसी का
पुराना टाइयर
सहमता रहता है की माँ ना देख ले
पर माँ जब देखकर भी उसे नही डांटती
तो उसे ल्गता है
उसने कुछ बुरा नही किया
इतना तो चलता है
भ्रष्टाचारी स्कूल की लाइन में लगा
बिल्कुल तरन्नुम में गाता है
” इंसाफ़ की डगर पे, बच्चों दिखाओ चल के
ये देश है तुम्हारा, नेता तुम्हीं हो कल के ”
वो बेताला नही होता..
वो नही पढ़ना चाहता है गणित
उसे प्यार हो जाता है
प्रसाद की ” इरा” से
पर इरा का प्यार
उसे मोटी तनख़्वाह वाली नौकरी नही दिला सकता
जिससे पूरकस दहेज मिल सके
तो वो मास्टर और बाबूजी के कहने पर सायंस ही लेता है..
अब वो प्रसाद और इरा से दूर जा चुका होता है ..
वो भी तालियाँ बजाता है
विलेन और स्मगलर के पीटने पर
सिनेमा हाल तक
हीरो उसका भी “हीरो” होता है..
वो हमारे तुम्हारे जैसा ही रहता है..
चाय पीता भूंजा फांकता
फिर सालों बाद एक दिन खबर आती है
उसके घर छापा पड़ा है
वो तो
लंपट है..ठग है चोर है..
करोड़ों का माल अंदर किए हुए है
दोस्त तुम बेकार में बुरा मान गये
मुझे पता है तुम्हारी कहानी भी ऐसी ही है
पर मैं किसी और की बात कर रहा था
अब लो..
अबे सही में …
५..
दिल्ली वाले जीजाजी
का अंकगणित
अलगे है..
साला यहाँ साल भर
रसुन्तेला निकल जाता है
खेत में काम करके
हुआँ उ ए सी में बैठ के बोलते हैं कि
खेती करते रहो
देश में खाद्यान्न की कमी ना हो
सला एक बार मौका मिले ना तो सब हसोत फसोत के बैठ जाएँगे
फिर बोंग मराए ई खेती पेती..
उनकी वेबसाइट का पता : http://rajshekhar.in/
यह एक हाइकू मैथली में-
लीपल ऐंगना
जों लिखल हाथ
नभकी कनिया
खाय धीपल भात…
नौ चाँद बीते..
रातें अब तककाली काली
ख़ाली ख़ाली
झींगुर कुतर जाया करती थी
फिर,
तुम्हारे सपनो ने रातों को खबर दी
कि तुम आ रहे हो- सच में..
…
रात ने शाम से कुछ वक़्त उधार मांगे
सूरज से गुज़ारिश की कि वो जल्दी डूबे
चाँद से कहा “तुम रोज़ आ जाओ न प्लीज़ “
जुगनुओं की रानी को बीते सालों का वास्ता दिया
तब लाख जुगनुओं से ज़मीं पर सितारे छिड़क दिए
अब बावली रात फाख्ते की तरह कूदती रहती है-
रात रानी की हल्की डालियों से,
रेडियो सीलोन पर आती,
तलत महमूद की थरथराती भीगी आवाज़ तक..
….
घबराहट और इंतज़ार,
इंतज़ार…
इंतज़ार और घबराहट,
….
कल नौ चाँद बीते..वो नहीं आये..
..अब चाँद, सितारे, जुगनू, सूरज
मेरी रातों को ताना देते हैं-
नौ चाँद बीते..वो आये नहीं ?
सबमें वसंत बाँट देना
बिनी, छत के उस कोने जहाँ
बोरियों में रखा सीमेंट जम गया है
सबसे छुपा कुछ जिद्दी नवम्बर बो दिए हैं मैंने
देखते रहना ..
अपनी हंसी से सींचते रहना … फरवरी तक,
शर्माती हुयी सिंदूरी कोंपले आ जाएंगी फिर मार्च तक फल .
थोड़ा थोड़ा काट कर सबमें वसंत बाँट देना
भ्रष्टाचारी :कुछ पॉइंट ऑफ़ व्यू 1,2,3,4,5
1
ठग..चोर.. भ्रष्टाचारी…
ये सड़कों पर के शब्द हैं..
घर के बाहर बोले जाने वाले – कैजुअल से शब्द
पान खाने के बाद थोड़ा चूना और पीपरमिंट माँगने जैसा होता है ये सब बोलना..
हम इन शब्दों को खर्च आते हैं बाहर
और फिर हम घर लौटते हैं
पीक थूकते हुए
बिजली के खंभे पर..
वही शब्द -
रात में सड़कों पर पीक सने और घिनौने हो जाते हैं
रात भर शराब की बंद दुकानों के सामने बूँद बूँद गिरगिराते
फिर बहकर चले जाते हैं
अख़बारी पन्नों पर
सुबह
चाय के वक़्त
घरों तक पहुच जाते हैं ..
चोर ..ठग ..भरषटाचारी
जिन्हें हम सड़कों पर छोड़ आये थे..
2…
वो आक्ण्ठ डूबा है
“उसमें”
जिसे तुम पाप कहते हो
और वो मौका
उसके पास है बहुत मंहगी परफ्यूम
जिसके फाहे वो कान मे रखता है
वो तुम्हें ना सुनता ना सूंघता है…
3…
भगवान दसावतरी
होते हैं
हर युग में “प्रकट” होते हैं
राक्षस और भ्रष्टाचारी नहीं
वो तो हमारी तुम्हारी तरह
माँ को तकलीफ़ देते हुए
दाई के हाथों घर
या सदर अस्पताल में पैदा होता है..
खिलौने के लिए किल्लोल करते हुए
वो एक दिन जब उठा लता है पड़ोसी का
पुराना टाइयर
सहमता रहता है की माँ ना देख ले
पर माँ जब देखकर भी उसे नही डांटती
तो उसे ल्गता है
उसने कुछ बुरा नही किया
इतना तो चलता है
भ्रष्टाचारी स्कूल की लाइन में लगा
बिल्कुल तरन्नुम में गाता है
” इंसाफ़ की डगर पे, बच्चों दिखाओ चल के
ये देश है तुम्हारा, नेता तुम्हीं हो कल के ”
वो बेताला नही होता..
वो नही पढ़ना चाहता है गणित
उसे प्यार हो जाता है
प्रसाद की ” इरा” से
पर इरा का प्यार
उसे मोटी तनख़्वाह वाली नौकरी नही दिला सकता
जिससे पूरकस दहेज मिल सके
तो वो मास्टर और बाबूजी के कहने पर सायंस ही लेता है..
अब वो प्रसाद और इरा से दूर जा चुका होता है ..
वो भी तालियाँ बजाता है
विलेन और स्मगलर के पीटने पर
सिनेमा हाल तक
हीरो उसका भी “हीरो” होता है..
वो हमारे तुम्हारे जैसा ही रहता है..
चाय पीता भूंजा फांकता
फिर सालों बाद एक दिन खबर आती है
उसके घर छापा पड़ा है
वो तो
लंपट है..ठग है चोर है..
करोड़ों का माल अंदर किए हुए है
दोस्त तुम बेकार में बुरा मान गये
मुझे पता है तुम्हारी कहानी भी ऐसी ही है
पर मैं किसी और की बात कर रहा था
अब लो..
अबे सही में …
५..
दिल्ली वाले जीजाजी
का अंकगणित
अलगे है..
साला यहाँ साल भर
रसुन्तेला निकल जाता है
खेत में काम करके
हुआँ उ ए सी में बैठ के बोलते हैं कि
खेती करते रहो
देश में खाद्यान्न की कमी ना हो
सला एक बार मौका मिले ना तो सब हसोत फसोत के बैठ जाएँगे
फिर बोंग मराए ई खेती पेती..
उनकी वेबसाइट का पता : http://rajshekhar.in/
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