ये दिल्ली है मेरे यार...बस इश्क मुहब्बत प्यार!
पता नहीं क्यूँ, इस शहर में कुछ आकर्षण सा लगता है. शायद ऐतिहासिक घटनाओं का केंद्र होने की वजह से, भारत की राजधानी होने की वजह से, फिल्मों की वजह से, शाह-रुख की वजह से, यहाँ की मेट्रो की वजह से या हजारे आन्दोलन की वजह से इस शहर की कुछ अलग ही छवि है मानसपटल पर. खैर, बचपन में एक बार यहाँ आया था, लेकिन ऑटो वालों की बदतमीजी, न्यू डेल्ही स्टेशन के बहार लटकते बिजली के तारों और मेट्रो के अलावा कुछ ख़ास याद न था.
पहली मुलाकात के करीब ६ साल बाद फिर से मोहतरमा से मिलने का मौका मिला - और दिलो-दिमाग में फिर से दिल्ली की वही "रहस्यमयी छवि" घूमने लगी. मुंबई से सुबह ८ बजे बैठे मेरे तीन मित्र और मैं. अगले दिन सुबह ५ बजे हम दिल्ली में थे, अक्टूबर की हलकी गुलाबी ठण्ड में चाय की चुस्की लेते हुई बतिया रहे. इस बार दिल्ली थोड़ी अलग नज़र आई. नया नया रेलवे स्टेशन, जिसपर काम ज़ारी था. पहले वाले तार गायब थे. चाय ख़त्म कर हम बढ़ चले अपनी "मंजिल" की ओर.रास्ते में एक बस मिली-बस में हम चढ़े, कंडक्टर ने पैसे लिए और इससे पहले कि बिल माँगा जाए,मंजिल आ गयी.बिल बनाया गया ४० रुपयों का, और १०० मीटर न चली होगी बस. पिछली बार ऑटो वाले थे, इस बार बस वाला-कुछ चीज़ें नहीं बदली थी.
जल्दी ही आगे का यात्रा वर्णन लिखूंगा...आते रहिएगा ब्लॉग पर दो एक दिनों में..
पता नहीं क्यूँ, इस शहर में कुछ आकर्षण सा लगता है. शायद ऐतिहासिक घटनाओं का केंद्र होने की वजह से, भारत की राजधानी होने की वजह से, फिल्मों की वजह से, शाह-रुख की वजह से, यहाँ की मेट्रो की वजह से या हजारे आन्दोलन की वजह से इस शहर की कुछ अलग ही छवि है मानसपटल पर. खैर, बचपन में एक बार यहाँ आया था, लेकिन ऑटो वालों की बदतमीजी, न्यू डेल्ही स्टेशन के बहार लटकते बिजली के तारों और मेट्रो के अलावा कुछ ख़ास याद न था.
पहली मुलाकात के करीब ६ साल बाद फिर से मोहतरमा से मिलने का मौका मिला - और दिलो-दिमाग में फिर से दिल्ली की वही "रहस्यमयी छवि" घूमने लगी. मुंबई से सुबह ८ बजे बैठे मेरे तीन मित्र और मैं. अगले दिन सुबह ५ बजे हम दिल्ली में थे, अक्टूबर की हलकी गुलाबी ठण्ड में चाय की चुस्की लेते हुई बतिया रहे. इस बार दिल्ली थोड़ी अलग नज़र आई. नया नया रेलवे स्टेशन, जिसपर काम ज़ारी था. पहले वाले तार गायब थे. चाय ख़त्म कर हम बढ़ चले अपनी "मंजिल" की ओर.रास्ते में एक बस मिली-बस में हम चढ़े, कंडक्टर ने पैसे लिए और इससे पहले कि बिल माँगा जाए,मंजिल आ गयी.बिल बनाया गया ४० रुपयों का, और १०० मीटर न चली होगी बस. पिछली बार ऑटो वाले थे, इस बार बस वाला-कुछ चीज़ें नहीं बदली थी.
जल्दी ही आगे का यात्रा वर्णन लिखूंगा...आते रहिएगा ब्लॉग पर दो एक दिनों में..