शुक्रवार, 31 अगस्त 2012

इसी झमाझम बारिश में .....

इसी झमाझम बारिश में .....
उन ऊँचे मकानों का रईश वाशिंदा
कागज़ी नाव तैरा खिलखिलाता रहा
कहाँ छप्पर में रहने वाला  छोटू
फटी से रजाई में छटपटाता रहा
इसी झमाझम बारिश में
लाट साहब बालकनी में बैठ
गरम चाय कि चुस्की लेते रहे
हरिया पर छपरिया की ओट से
बादल कहर बन बरसते रहे
इसी झमाझम बारिश में
जो बाबु तो चरपहिये में थे ..
शीशे गिरा तेज़ी से  निकल गए
और जो गरीब साईकल से थे
बीच रश्ते उनके पैडल गिर गए
इसी झमाझम बारिश में ||
प्रेमी प्रेमिका इस मौसम में 
हरदम मशगुल बातियाते रहे
और मुझसे शायर अपनी
कल्पित ग़ज़ल दुन्दते रहे
इसी झमाझम बारिश में ||

बुधवार, 29 अगस्त 2012

कवि तो ख़ुद एक कविता है


कवि तो ख़ुद एक कविता है



उसमें अनंत गहराई है,
है व्याकुलतातन्हाई है,
ढूंढ सको तो ढूंढ लो ,
एक ‘सोताउसमें कहीं बहता है-
कवि तो ख़ुद एक कविता है ।
दुनिया से बेगाना है,
दुनियादारी से अनजाना है,
अव्यक्तउलझे भावों को,
वो कागज़ पर लिख देता है-
कवि तो ख़ुद एक कविता है ।
शब्दों की भी सीमायें हैं,
कविता में कुछ अंश ही आयें हैं,
सागर से निकली इन बूंदों में भी,
कितना कुछ वो कहता है ,
कवि तो ख़ुद एक कविता है ।
उन शब्दों को हम ना ताकें,
गर उस हलचल को पहचान सके ।
क्या कहना आख़िर वो चाहता है,
उन अर्थों को हम जान सकें,
बेचैनीउमंग नीरवता को भी,
वो लफ्जों में कह देता है ।
कवि तो ख़ुद एक कविता है ।
कविता तो एक माध्यम है,
आख़िर तो कवि को पढ़ना है ।
कलम की इस सीढ़ी से,
उसके ह्रदय तक चढ़ना है ।
वहाँ पहुंचोगे तो पाओगे
एक कलकल करती सरिता है ।
कवि तो ख़ुद एक कविता है ।
ऋषभ जैन

रविवार, 19 अगस्त 2012

आज़ादी के 65 वें पायदान पर खड़ा भारत और एक भारतीय...

                        
                               हाथों में गीता रखेंगे ,
                                   सीनों में कुरान रखेंगे.,
                              मेल बढ़ाये जो आपस में...
                              वहीँ धर्म ईमान रक्खेंगे,
                              अमन की एक अज़ान रखेंगे....
                              काबा और काशी भी होगा...
                             पर सबसे पहले हिंदुस्तान रक्खेंगे !!

सर्वप्रथम तो ओलंपिक  पदकों की दौड़  में दोगुनी छलांग मारकर छः पदकों से देश का सीना सुसज्जित करने उन जांबाज़ ,शानदार,नायब,प्रतिभागियों को सादर धन्यवाद और बधाई...जिनमें दो महिलाएं भी शामिल हैं.....! वहीँ कल दिवंगत हुए महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख को श्रद्धासुमन सहित सादारांजलि. तो आइये बात करते हैं कुछ आज़ाद भारत की,कुछ आज़ादी,तो कुछ 'गुलाम' भारत से आज़ादी की !!
                    सबसे पहले तो यह बताइए कि  आज़ाद भारत की 65 वी सालगिरह पर आप सब कैसा महसूस कर रहे हैं....जनाब! आप ने अपनी शैय्या त्यागी या अभी भी भगत सिंह और गाँधी से मुलाकात फरमा रहे हैं....! अगर 'जाग ' रहे हों तो थोडा मेरे साथ विचार विमर्श कर ही लीजिये ...! आइना दिखा देते हैं खुद को,खुद की सरज़मीं को ! दरअसल विगत वर्ष तक जब भी आपसे बातें करती थी....मुझे मेरे एक मित्र ने चिन्हित किया....कि मैं देश की नकारात्मक छवि देखती हूँ....पर मेरा तर्क था कि जो सच है उसे मैं लोगों के सामने पेश ही कर सकती हूँ....पर इस एक सालाना अनुभव ने....मेरे मस्तिष्क में कुछ विचारों को रोपित किया.....मुझे एक आशावादी दृष्टिकोण दिया! आमिर के शो -सत्यमेव जयते सिर्फ एक माध्यम था शायद लोगों को कडवे और मीठे सचों से अवगत कराने का; जिससे ये पुष्टि हुई कि अगर जिस देश में एक छात्रा की इज्ज़त सरेआम सड़क पर बेपर्दा हो जाती है तो वहीँ एक ऐसी ही बलात्कार की शिकार लड़की 'प्रज्ज्वला' की शुरुआत करके देह व्यापार से सैकरों लड़कियों की इज्ज़त बचाती है .......
                 मुझ से,आप से ,हम से बनता है यह देश.....एक दूसरे के मत्थे ठीकरा फोड़ने से काम नही चलेगा.....जातिप्रथा (मैला उठाने की प्रथा -उम्मीद करती हूँ जल्द ही इस अमानवीय प्रथा पर रोक लगेगी...)महिलाओं ,बच्चों से जुड़े कोई भी दुष्कृत्य ,अमानवीय,अनैतिक ,हिंसक,दुराचारी,प्राकतिक और राष्ट्रीय संसाधनों का अवमूल्यन और अपमान,बड़ों की उपेक्षा,....आदि ये तो कुछ विषय जो देश के समक्ष उठाये गये.पर जो भी हो....सवाल शुरुआत का है जो हो गयी है....तो दोस्तों मेरा हमेशा विश्वास रहा है कि कहीं न कहीं हर भारतीय अपने भारत से उतना ही प्यार करता है जितना मैं.....या और कोई देशवासी....! तो चलिए हम निकल पड़ते हैं इस सुन्दर परिकल्पित भारत के निर्माण की दिशा में!! :)
                                दोस्तों....हम में से अधिकांश जन यही सोचते हैं कि क्या कर लेंगे हम अकेले...यह देश तो बर्बादी के रास्ते पर   बढ़ा  चला जा रहा है.....बेहतर है जो हो रहा है होने दो.....! पर वक़्त अब देश के अनगिनत शहीदों को उनकी शहादत  का ऋण चुकाने का है....(दरअसल इस वक़्त पृष्ठभूमि में लता जी का सदाबहार 'ए मेरे वतन के लोगों....जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा याद करो कुर्बानी....में...गुंजायमान है.....और मैं भी गुनगुना  रही हूँ......:)घबराइये नही अन्ना जी के आन्दोलन में पुलिस की लाठी का शिकार बनने को नही कह रही हूँ.....वह कार्य तो आप हम जैसे साधारण लोगों से  तो होने वाला  नहीं ! तो उठ खड़े होइए ,निकल पड़िए अकेले ही.... कारवां खुद-ब-खुद बनता चला जायेगा....एकला चलो रे....भेड़ें  झुण्ड में चलती....हैं.....सिंह  अकेला....!!  
              आप जहाँ हैं वहीँ से शुरुआत कीजिये....वक़्त निकालिए....देश के लिए....और उसे समाजसेवा कहकर उसका मज़ाक मत उड़ाइए ....एक ऋण है उस समाज का जो आपकी परवरिश का गवाह रहा है.....,वह ऋण चुकता करने का माध्यम है....छोटा सा....! 
             कल हमेशा की तरह मुझे' अभ्यासिका' में पढ़ाने  जाना था.,...पर मुझे वाइरल  बुखार ने जकड रखा है....घर से भी ऐसी अवस्था में जाने की अनुमति न दी गयी.....पर फिर एक मित्र के स्नेहपूर्ण आग्रह पर मैं मानों स्वतः स्फूर्त हो उठी.....लगा जश्न-ए-आजादी  की पूर्व संध्या पर इससे अच्छा  मैं क्या कर सकती हूँ.....भला.....!
           घटना का लब्बो लुवाब यह है कि जब इस देश में २० साल का लड़का कॉलेज ख़त्म होने के बाद एक मुफ्त शिक्षा के लिए स्कूल चला सकता है  तो क्या थोडा कष्ट  उठाकर मैं उनके लिए इतना नही कर सकती.....(अरे नही आप को स्कूल खोलने को नही बोल रही हूँ.....:))क्यूंकि हम ही वो मतदाता होते हैं....जो विजेता दल चुने जाने के बाद निराश होते हैं.....फिर गली,नुक्कड़,चाय के ठेलों,चौपालों.....या शतरंज की बिसात पर बैठकर राजनीति की बरसों से चली आ रही रीत को ,ढर्रे को बेहिसाब गालियाँ देते हैं पर जब मतदान कि बारी आती  है तब....या तो मतदान करने ही नहीं जाते या फिर.....उम्मीदवार  की योग्यता,चरित्र,पृष्ठभूमि की पुष्टि किये बिना....किसी विशेष दल के प्रति अंधभक्ति के चलते....उसी के उम्मीदवार  को शान से मत  दे देते हैं....तो मुद्दा यह है कि जब बारी करने की आती है तो हम हाथ पर हाथ धरे देखते रह  जाते हैं....! 
        अन्ना और उनकी टीम में चाहे जो कितनी ही खामियां गिनाएं  पर एक बात है कि राजनैतिक गलियारों में उतरने का और सच्चे और अच्छे लोगों को उतारने का  निर्णय....जनता को सजग करने का निर्णय....आज वास्तव में प्रासंगिक है....! मेरी ही तरह इस निर्णय पर संदेह करने वाले मित्रों को मेरा सुझाव है कि वे सी-एन-एन  पर 'आप की अदालत' की उन कड़ियों  को देखें....जिसमें अन्ना ,किरण बेदी. और केजरीवाल....से प्रश्न किये गये हैं. क्यूंकि यह कुछ व्यक्तियों का निस्वार्थ व्यक्तिगत किन्तु सामूहिक प्रयास है.....आशा है हम सब इससे जागे तो हैं....और अब औरों को जगाने का भी काम करेंगे.....यूँ तो केजरीवाल जैसी  जान  दाँव   पर लगाकर मांग पर टिके रहने वाली उस उच्च श्रेणी की समाजसेविका तो मैं कदापि  नही हूँ और न ही अन्ना जी जैसे दिल दिया है जान भी देंगे जैसा उदार और शेर दिल वाला फैसला लेने ले पाने में सक्षम हूँ मैं.....पर अपना हिस्सा तो निकालकर थाली में रख ही सकती हूँ.....विश्वास है....छप्पन भोग से थाल शीघ्र ही सुसज्जित हो जायेगा....और राष्ट्र -देव को प्रसाद अर्पित हो पायेगा ....!! 
                                   हम न सोचें हमें क्या मिला है ,
                                   हम ये सोचे किया क्या है अर्पण!! :)
 बहुत  हो गये...सवाल -जवाब कि कौन करेगा? क्या होगा? कैसे होगा? कुछ होगा या नही ? अब अपनी आत्मा से सवाल करने का वक़्त है ,विवेक के साक्षात्कार  वक़्त है.....मैंने क्या करना है? मुझे कैसा भारत चाहिए....और मैं इसके लिए क्या कर सकता/सकती हूँ....!! २०१४ के आम चुनावों में आशा है 'आम ' जनता जिनमे हम युवा अधिक हैं अपनी कल्पनानुसार ,स्वप्नों के भारत की नीव रखेंगे ....



मित्रों ....रबिन्द्रनाथ   टेगोर जी की ये पंक्तियाँ....मुझे हमेशा एक खूबसूरत भारत माता की छवि  दिखाती   हैं ..तो उन्हें मैं यहाँ उद्धृत करने नहीं रोक पाई....(संयोगवश पृष्ठभूमि में दिलजले फिल्म का' मेरा मुल्क मेरा देश.....की 'इस वतन को स्वर्ग हम बनायेंगे.' वाली  पंक्तियाँ  चल रहा है....:)
                             
                                         जहाँ उड़ता फिरे मन बेख़ौफ़
                                    और सर हो शान से उठा हुआ 
                                    जहाँ इल्म हो सबके लिये बेरोक 
                                    बिना शर्त रखा हुआ 
                                    जहाँ घर की चौखट से छोटी सरहदों में ना

                                   बंटा हो जहान

                                   जहां सच से सराबोर हो हर बयान
                                   जहां बाजुएं बिना थके लगी  रहें कुछ
                                   मुक्कमल तलाशें  
                                   जहां सही सोच को धुंधला ना पाएं उदास 
                                   मुर्दा रवायतें
                                  जहां दिलो-दिमाग तलाशे नया खयाल
                                  और उन्हें अंजाम दे
                                  ऐसी आजादी की जन्नत में आए खुदा
                                     मेरे वतन की हो नई सुबह !

                  
 अरे मैं आपको स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं तो देना ही भूल गयी...आशा है हम अगली सालगिरह पर कुछ और आज़ाद हो पाएं!! ६५ वें जश्न -ए- आजादी की शुभकामनाएं......!! :)

शनिवार, 18 अगस्त 2012

भारतीय कौन ???


सवाल उठता है भारतीय कौन है इस भारत में .. इसी सवाल को जानने कि जेद्दोजेहद में मैंने पाया कोई १% सिरफिरे है इस १२० करोर में जो भारतीय है | यहाँ कोई हिन्दू है तू कोई मुस्लिम कोई सिख कोई जैन ,सब कुछ न कुछ है तो, हिन्दुस्तानी कहा
ँ है ?
१२० हिन्दुस्तानियों में सब बटें है , पहले धर्म के नाम पर, फिर जाति के नाम पर, फिर भाषा के नाम पर जो बचे जो छेत्र के नाम पर| बचपन से ही सिखा दिया जाता है तुम मुसलमान हो मुसलमान के साथ रहो, तू हिन्दू है मुस्लिम से मत बात कर .. मुस्लिम को हिन्दू के मंदिर में नहीं जाना है और हिन्दू को मस्जिद और चर्च में.. ये सब भूल जाते है कि पैदा तो तुम सब यहीं हुए हो तुम्हारी सैकड़ों पुश्तें इस धरती पर बीत गयीं जाहे मुसलमान हो या हिन्दू या ईसाई| धर्म में घुसो तो ये चमार है ये ब्रह्मिन है ये बनिया है ये लाला है ये धोबी है .. इसके यहाँ नहीं जाना उसके यहाँ नहीं जाना .. इसके साथ नहीं बैठना .. इसके साथ मत खाओ .. बड़े लोग समझा देते है और हम सब मानते है हमही सब... तब सब का दिमाग घास चरने जाता है .. और जो पदे है उनमे ये भावना और बलवती होती है . वो खुद तो कट्टर्पथी बन जाते है १०-२० को और जोड़ लेते है | राष्ट्र वाद कि भावना मार जाती है | जाति के अन्दर भी बटवारा है .. वो कहेगा में पिछड़ों में ऊँचा हूँ .. मैं अगड़ों में ऊँचा हूँ... जो समाज के लोगों मैं खुद को नीचे समझते है वो भी किसी न किसी तरीके से खुद को अपनी ही जाति के दूसरों साथियों से ऊँचे बताने लगेंगे |
जो बंगाली है उसका कोई दूसरा बंगाली साथी मिल गया तो उसके और साथ चलने वाले भाद मै जाये उसको फ़िक्र नहीं रहती किसी बिहारी को बिहारी मिल गया तो उसकी भी बात बन गयी .. इनमे जो भारतीय है वो अकेला रह जायेगा| ये सभी हर कहीं भारत के किसी कोने में मिलेगा |
जब कोई भारतीय ओलंपिक में जीत गया लोगों को उसकी फिकर नहीं लेकिन असम में कुछ बंगलादेशी और बोडो में झड़प हो गयी तो सभी कुछ सर पर उठालंगे ..क्यूंकि उनके धर्म पर प्रहार है, उनकी प्रतिष्ठा का प्रशन है . वो वोट उसे ही देंगे जो उनके धर्म का विकास करें न कि उनका ..कहीं किसी भी देश में उनके धर्म पर विपदा आ जाये तो लगेगा उनकी जान निकल ली किसी ने, जायेंगे .. कुछ राष्ट्रीय संपत्ति जला देंगे.. और एक दो जब तक मार न जाये तब तक सफल नही होगा आन्दोलन ..
अमेरिका इतना बड़ा देश है और भारत कि तरह ही संघीय देश है ..क्या इस तरह का छेत्रवाद वहां दिखता है..नहीं ..
अब बात की जाये राष्ट्रवाद पर . कितने है यहाँ जो राष्ट्रगान बजने पर उठ जाते है .. कई तो 'विजई विश्व तिरंगा प्यारा को " राष्ट्रगान बता देंगे . और जो जानते है की ये भी राष्ट्रगान है तो उनको इस गीत को सम्मान देने की फुर्सत नहीं है .. कहाँ है तुम लोगों के बीच का हिन्दुस्तानी भाग.. अब किसी को जबरदस्ती तो की नहीं जा सकती की भाई इसका सम्मान कर उसका सम्मान कर ... हिन्दू है तो उसे पता है मंदिर का सम्मान करना है ..मुस्लिम है नमाज़ के लिए समय निकल ही लेगा वो भी कितना ही बिजी हो .. क्यूँ ?? भैया धर्म की बात है इसको सम्मान नहीं करेगा तो नरक में जायेगा ,जहन्नुम में जायेगा .. इनको ये नहीं पता ऐसे ही तुम्हारे अन्दर की भारतीयता मरती रही तो तो जल्द ही समय आएगा की कहीं के नहीं रहोगे ..
यही कारन है की हम जापान , जर्मनी , इसराईल जैसे अदने से देशों से पीछे है क्यूंकि हमको अपनी जाति को आगे बढाना है, हमको अपने धर्म को बढाना है .. कितना भी जाहिल नेता हो अगर मेरेa धर्म का है तो वोट उसे ही दूंगा चाहे जीतने के बाद मुझे ही लुट ले .. तुम्हे तो लूटेगा ही और तेरे जैसे हजारों को भी लूटेगा .. लकिन हम बाज़ आते कहाँ है ..

अरे सम्हल जाओ नहीं तो न तेरा धर्म बचेगा न जाति , इस देश को जिस तरह बल्लभ भाई पटेल ने टुकड़े -२ लेके जोड़ा है वो वैसे ही बट जायेगा और वो समय जल्द ही आएगा |

शुक्रवार, 17 अगस्त 2012

बापू! अब मत आना



२१वी सड़ी ने धरती पर कदम रखा ही था| बदलाव की आंधी संस्कृति और संस्कारों को उड़ा रही थी |इस बदलाव से स्वर्ग भी अछूता ना रहा| वीणा के सुरों के स्थान पर अब इलेक्ट्रिक गिटार का 'बेकग्राउंड म्यूजिक' बजने लगा|मेनका की जगह 'ब्रिटनी' अप्सराओं की 'रोल मोडल' बन गयी और जो नेता यमराज को रिश्वत देकर वहां पहुंचे थे, वे अपनी अपनी पार्टी बना इंद्र की कुर्सी के लिए लड़ने लगे|

इन सब के बावजूद 'बापू' तटस्थ रहे| लेकिन एक दिन बापू का चरखा 'ओल्ड फैशंड' बता कर स्वर्ग से फेंक दिया गया| उनका मन उचाट गया| उन्होंने सत्याग्रही अनशन करने की कोशिश की तो अप्सराओं ने ज़बरदस्ती अंगूर खिला दिये| अंततः तंग आकर बापू स्वर्ग त्याग दिया | वे अपने प्यारे आज़ाद भारत को देखने पृथ्वीलोक आ गए और मुंबई घूमने लगे|

चारों ओर ऊँची इमारतें, तेज़ भागती गाड़ियां, माल सब उनकी कल्पना से परे था| उन्हें गर्व हुआ भारत की तरक्की पर| जगह जगह उनके स्मारक, मूर्तियाँ , रास्तों के नाम, नोट पर तस्वीर देख बापू का अचम्भा और बढ़ गया| सोचा चलो भारत सही रस्ते जा रहा है|

अचानक दो युवक उन्हें देख रुक गए, पहला  बोला -"भाई मुझको बापू दिखरेले है|" दुसरे ने जवाब दिया "मुझे भी दिखरेले है बाप, जरूर कोई केमिकल लोचा है|" बापू की समझ में कुछ नहीं आया| कई लोग उनके पास आकर तस्वीरें लेने लगे, कई औटोग्राफ मांगने लगे| बापू बड़े खुश थे|


रात में एक अँधेरी गली से बापू को किसी महिला की मदद की गुहार सुनाई दी| कुछ नशे में धुत्त युवक एक युवती के साथ अभद्र व्यवहार कर रहे थे और भीड़ दूर खादी तमाशा देख रही थी| सबकी जुबां पे ताला, हाथों में जंग| किसी में हिम्मत नहीं थी गलत को रोकने की| बापू ने युवकों को समझाने की कोशिश की तो उन्हें धक्का दे कर गिरा दिया गया| कोई मदद को नहीं आया| कुछ तो हंसने लगे "सिरफिरा| गांधीगिरी करने चला था|" बापू के भ्रम पलभर में टूट गए|

उन्होंने बारीक नज़र से चरों ओर देखा| क्या देश सच में आज़ाद था? 

हाँ, कहने को मुल्क आज़ाद था| लेकिन मानसिकता पराधीन थी| लोगों ने अपना ज़मीर, ईमान, हिम्मत सब गिरवी रख छोड़ा था| ना सच का साथ देने कि हिम्मत थी, ना अत्याचार का सामना करने की| जब तक खुद पर ना बीते किसी की जुबां से लफ्ज़ ना निकलता था| अफसर कर्म से, नेता शर्म से और कौमें असली धर्म से आज़ाद थी| अमीर न्याय से,अभिनेत्री कपड़ों से और संसद जवाब देहि से आज़ाद थी| व्यापारी मिलावट को आज़ाद थे, उद्योगपती घोटाले करने को| डूबता देश अब किसी का नहीं था| सभी दूसरों की ज़मीं खोद अपनी इमारत ऊँची करने में लगे थे| अब मशाल थमने वाला कोई ना था| अगर कोई कोशिश करता भी तो खुद दलदल में धंसता चला जाता|

बापू ने दर्द में आँखें मूँद ली| काश वे धरती पर लौटे ही ना होते| उन्होंने अपनी लाठी संभाली और धीमे क़दमों से आसमान की ओर चले गए| 

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मंगलवार, 14 अगस्त 2012

कहीं मैं बागी न बन जाऊं..

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दुर्दशा इस देश की देखकर
अँधेरे में भविष्य सोचकर
आज़ादी की रणभेरी बजाने को
कहीं मैं बागी न बन जाऊं ||
भूख से विव्हल किसान है
नेता बने गंभीर विषाणु है
विषाणुओं को अब मिटाने को
कहीं मैं बागी न बन जाऊं ||
नारी के सर पर जहाँ ताज हो
वहीँ नारियां बद  अस्मात हो
सवारने फिर से इनकी लाज को
कहीं में बागी न बन जाऊं ||
शहीद स्वर्ग से देखते होंगे
सुराज्य को यहाँ खोजते होंगे
उनका ही राम राज्य लाने को
कहीं मैं बागी न बन जाऊं ||
भविष्य देश का सुधारने को
गुंडों नेताओं को मिटाने को
सबमे भारतीयता  लाने को
कहीं मैं बागी न बन जाऊं ||

शुक्रवार, 10 अगस्त 2012

भगवान कृष्ण : आज के परिप्रेक्ष्य में..

  
                               
हिन्दू पंचांग के भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन अवतरित हुए भगवान श्रीकृष्ण की याद आते ही सर्वप्रथम हम सबके मस्तिष्क पटल पर माखन खाते नटखट कान्हा....या फिर....बंसी बजाते मुरलीधर की छवि उभरने लगती है.....या हम युवाओ के लिए उनका....एक आदर्श और दिव्य प्रेमी की परिकल्पना....वाला स्वरुप.....चाहे कोई भी रूप हो....मनमोहक तो वो हैं ही ! :) कितने ही रूप हैं उनके.....हम में से शायद अधिकांश ने.. भारतीय संस्कृति की धरोहरों में से एक महाभारत ,गीता,विष्णुपुराण में उनके इन रूपों के बारे में पढ़ा होगा......जन्मस्थली(मथुरा कारावास ), पालन और लीलाओं का केंद्र गोकुल....तो प्रेम स्थली वृन्दावन तो द्वारिका में एक प्रजापालक के रूपों में इन्होने अपनी लीलाएं दिखायीं हैं....एक आदर्श मित्र जिन्होंने मित्रता की मिसाल कायम की .....आज भी ऐसी मित्रता जिसमें ....न तो कोई भेदभाव हो...... मित्र को बरसो बाद देखकर आंसुओं के सैलाब को न रोक सके.....अपने राजा होने का भी भान न रहे...सिर्फ मित्र को मिलने की भावाविहलता हो.....नही मिल सकती है.....संभवतः स्वयं मुझे भी ये नही पता कि क्यूँ मुझे भगवान राम और कृष्ण जो एक ही परमात्मा के दो स्वरुप हैं....में कृष्ण आज के समय में अधिक व्यावहारिक लगते हैं....खैर हम मनुष्यों की इतनी बिसात कहाँ कि हम अपने भगवान को चुन सकें.....जहाँ उनके राम स्वरुप का कोई अलग महत्व और उद्देश्य था...वहीँ कृष्ण रूप का....भी था....पर....जहाँ कान्हा...की व्यावहारिक ,समयानुसार और परिस्थिति अनुसार प्रतिक्रिया करने का ही आज सन्दर्भ है....क्यूँ अब कुछ भी बदलाव लाने के लिए.....हमें ऐसे ही सोचना ही होगा..जहाँ बात कृष्ण की हो और प्रेम का ज़िक्र न हो.....ऐसा कैसे हो सकता है भला.....प्रेम की पवित्रता ,दिव्यता,और प्रेम ,समर्पण की वास्तविक परिभाषा तो कृष्ण जी से ही मिलती है हमें.....वो रिश्ता जो किसी सांसारिक मान्यता नही चाहता था.राधा कृष्ण का....तो फिर रुकमनी के एक बार स्मरण करने पर....उसे ...बालगोपाल के रूप में माखन चुराने वाले....और....दही की हांडियां फोड़ने वाले.....कान्हा....हो या फिर.....भगवद गीता में उल्लेखित अर्जुन को...अपने सांसारिक संबधियों से मोह के कारण क्षुब्ध होता देख.....कर्तव्य बोध कराने वाले.....उसे गलत , अत्याचार और अधर्म के खिलाफ हथियार उठाने के लिए प्रेरित करने वाले.....हो....या मीरा जैसी तन मन धन से स्वयं को श्री चरणों में अर्पित कर चुकी भक्त के आराध्य हों....जो अपनी भक्त की एक पुकार पर....उसे मुक्ति दिलाने आ गये हों......चाहे....गुरु संदीपनी के शिष्य के रूप में.....भले ही ज्ञान का आरम्भ हों,स्त्रोत हों पर....मनुष्य रूप धरा है तो....भलीभांति शिक्षण ग्रहण किया.....बालसुलभ क्रीड़ायें की ....आज राम के आदर्शों की भाषा शायद निर्लज्ज हो चुके.....हम मनुष्यों को न समझ में आये....पर अब धरती पर अत्याचारों का सामना योगी पुरुष कृष्ण के तरीके से करने का वक़्त है.....और....एक और बात....जो शायद सीता माँ .के साथ हुए अन्याय के कारण मुझे दुखी करता है.....कि शायद एक आदर्श और प्रजा का रक्षक होने में कहीं उनका पति वाला रूप जो अपनी अर्धांगिनी की पीडाओं को नहीं समझ पाया.....वहीँ कुछ लोग कहते हैं.....कि कृष्ण भगवान् ने प्रेम किसीसे किया.....विवाह किसीसे.....तो कुछ कहते हैं......१६ हज़ार पटरानियों वाले कृष्ण रसिक मिजाज़ के थे.....जो भी हो....भगवान् की लीलाओं और उनके अवतरण के अलग अलग उद्देश्य तो थे ही.....और मनुष्य रूप में वे एकदम निष्कलंक ,सर्वोत्तम तो नही ही हो सकते थे.....पर जो भी हो अब समय भी त्रेता युग का नही रहा.....कलियुग में पुनः द्वापर की पुनरावृत्ति का काल आ गया है......क्यूँकी अब घी सीधी उंगली से निकल ही नहीं रहा है.....तो कृष्ण की टेढ़ी तरकीबों से निकलना ही पड़ेगा न......गोकुलाष्टमी की शुभकामनाएं.....! कृष्ण को अब जीवन में उतारने का वक़्त है.....समाज में लाने का वक़्त है.....जीवन के हर रूप का आनंद उठाएं......शरारतें करें......पर दूसरों की फजीहत के दांव पर नही.....:):)

बुधवार, 8 अगस्त 2012

कोई दीवाना कहता है

 कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है
मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है
मै तुझसे दूर कैसा हू तू मुझसे दूर कैसी है
ये मेरा दिल समझता है या तेरा दिल समझता है

मोहबत्त एक अहसासों की पावन सी कहानी है
कभी कबीरा दीवाना था कभी मीरा दीवानी है
यहाँ सब लोग कहते है मेरी आँखों में आसूं है
जो तू समझे तो मोती है जो ना समझे तो पानी है

समंदर पीर का अन्दर लेकिन रो नहीं सकता
ये आसूं प्यार का मोती इसको खो नहीं सकता
मेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना मगर सुन ले
जो मेरा हो नहीं पाया वो तेरा हो नहीं सकता

भ्रमर कोई कुम्दनी पर मचल बैठा तो हंगामा
हमारे दिल कोई ख्वाब पल बैठा तो हंगामा
अभी तक डूब कर सुनते थे सब किस्सा मोह्बत्त का
मै किस्से को हक्कीकत में बदल बैठा तो हंगामा

बहुत बिखरा बहुत टूटा थपेडे सह नहीं पाया
हवाओं के इशारों पर मगर मै बह नहीं पाया
अधूरा अनसुना ही रह गया ये प्यार का किस्सा
कभी तू सुन नहीं पाई कभी मै कह नहीं पाया

मंगलवार, 7 अगस्त 2012

जो बीत गई सो बात गई

कली और शूल

सुबह हुई और एक कली मुस्काई
खूबसूरती पर नाज़ कर इतराई
सूरज किरण से खुद को नहलाई
लेकिन काटें को देखकर झुंझलाई
शूल पिछली रात से जगा बैठा था
प्रेम विरह डाह से जकड़ा बैठा था
मदरते हुए कहीं से भवर आ बैठा
बिन संकोच पुष्प हर्दय पर जा बैठा
कली की उसको मौन सहमति थी
विरह रत शूल की यह और दुर्गति थी
इस दर्द ए दिल को वह सह न पाया
और जीते जी कफ़न को अपनाया
हरा भरा शूल इस दर्द से मर गया
और जाते जाते एक सबक दे गया
"जो रशिक है सजीव हो उसको सब माफ़ है
और उस जैसे निर्जीव को प्रेम एक शाप है "

फूल




फूल खुबसूरत होके धोखा दे जाते है
काटें बेचारे नीव होके भी गाली खाते है
और कुदरत का खेल तो देखो दोस्त
फूल शबनम बन जाते है ,काटें काटें ही रह जाते है
~ विकास पांडे

मैं कवि हूँ

मैं कवि हूँ
दुखियों की आवाज़ हूँ
भाषा का नाज़ हूँ
माया से आनाड़ी हूँ
शब्दों का खिलाडी हूँ
कागज का तेज़ हूँ
स्याह का नेह हूँ
कलम की छवि हूँ
मैं एक कवि हूँ

ग़ज़ल


[तुझे भूलने के लिए किताबों में डूबा, किताबों को भूल गया, तेरी यादों में झूल गया,
कल रात पुस्तकालय में लिखी ग़ज़ल, वाणी के इस नूतन  पृष्ठ पर मेरी पहली पोस्ट]

जो बयान जुबां से हो जाए, वो आशिकी क्या है?
जो होश में कट जाए, वो ज़िन्दगी क्या है?


देखा  है  नूर  तेरा, हर  ज़र्रे  में  कायम,
जो नज़र मंदिर में ही आए, वो बंदगी क्या है?


कसम याद में मेरी, आँसू ना बहाना,
जो अश्कों में बह जाए, वो बेबसी क्या है?


ना जुबां पर शिकायत, ना चेहरे पे शिकवा,
जो पराये समझ जाए, वो बेरुखी क्या है?  


हर मोड़ पर, इस शहर में, आशिक बहुत तेरे,
जिसे तारों ने ना घेरा, वो चांदनी क्या है?





सोमवार, 6 अगस्त 2012

आदत

सहेज कर रखी गयी ,

शेल्फ की किताबों पे पड़ी हुई गर्द जैसे .


या, किसी मोड़ पे इंतज़ार में उखड़ते, 

मील के पत्थर  जैसे.

आवाज़ को क़ैद करते नुक्तों की तरह

किसी एक सोच से चिपक कर 

चुप से रह जाते हैं .


"ठहरे हुए लोग" 


*************
-रश्मि चौधरी 

बुधवार, 1 अगस्त 2012

रंग है स्त्री....

                                                        रंग है स्त्री....                    

स्त्री रचकर विधाता ने जैसे रंग रचा हो|सारी ज़िन्दगी रंग ढून्ढ-ढूँढकर वो रंगों को अपनी ज़िन्दगी में शामिल करती रहती है....जाने कबसे जानती है वो मेहँदी के पौधों को...पत्तियां तोड़ लायी और रचा लिया हाथों पर....
      चेहरे के गुलाल ने शायद यह बताया होगा कि यह रंग माथे पर खूबसूरत लगेगा |सो सजा लिया माथे पर...दामन रंग लिए....स्त्री को जग ने पाया तो पत्थरों ने भी खजाने खोल दिए.....रत्नों के.....सागर ने मोती लुटाये....और उसके अश्कों की शक्ल में ढलकर साथ हो लिए...जिसे मानव महत्वहीन मानता रहा....उन कंकरों ने स्त्री को घुंघरुओं का संगीत दे दिया...!
 बसंत हो या फाग ,सरसों हो या टेसू,लगता है जैसे प्रकृति भी उसीको लुभाने के लिए फलती फूलती रहती है....|
       रंग खिलते भी हैं उसी पर....तुलसी,बरगद ,पीपट ,नीम का महात्म्य अजाना ही रह जाता ,जाने कब उसने गेंदे के बीच आम की पत्तियां पिरोकर बंदनवार बना ली ,कब द्वार पर रंगोली सजा ली ,दीप के कदमों पर फूल रखकर रोशनी और सुगंध को मिला लिया ,वह तो घड़े भी सजा लेती है,गोया कि पानी ने भी अपनी बेरंगी छोड़ने की गुजारिश उसीसे की हो!गमले का रूप बदल देती है ,जैसे कि प्रकृति के रंग काफी न हो....माटी से झाँकने के लिए....
       उसके  हाथों में दे रखी है विधाता ने सृजन की डोर ! बुनती रहती है उससे ज़िन्दगी के ताने-बाने....ताउम्र  अपनों और परायों के जीवन में रंग सजाने की कोशिश में लगी  रहती है ....स्त्री...उसी की बनायीं रंगीन सृष्टि को ,उसके अस्तित्व के उत्सव के दिन को होली के दिन घोलकर मनाएं हम....इस मेल के रंग भी अनूठे चुने हैं हमने.....होली के रंगों सा चमकीला रहे स्त्री जीवन यही दुआ है.....जिस प्रकार वह दूसरों के जीवन में खुशियों के मनमोहक रंग भरती

है ....उम्मीद है की उसकी ज़िन्दगी जो कहीं बेरंग हो रही है .....फिर से...उसे हम खूबसूरती के साथ....उसके सपनों को हकीकत में बदलकर रंगमयी कर देंगे.....:):) होली और अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की शुभकामनाओं के साथ.....:)
       

महिलाओं के लिए इज्ज़त और लज्जा के दोहरे मापदंड

         
    महिलाओं के लिए इज्ज़त और लज्जा के दोहरे मापदंड: क्या शहरी महिलाओं में गाँव की महिलाओं की                              तुलना में शर्म नही रह गयी है।.....??
                                           



      वैसे यह कहना कि शहरी महिलाओं में शर्म और सहनशीलता के अभाव की वजह से उनमें अब वो वास्तविक सौंदर्य नही रहा परन्तु ऐसा कुछ भी नही है क्यूंकि अत्याचार या अधिकारों का हनन झेलना और         चुप रह जाना क्यूंकि शर्म और सहनशीलता स्त्री का गहना है यह सोचकर....सबसे बड़ी मानसिक अशक्तता है...स्त्री के इस स्वरुप को उभारने का श्रेय मूलतः पुरुषों को ही जाता है क्यूंकि स्त्री का मूल स्वभाव तो     था ही क्षमाशीलता ,मर्यादा पालन और दूसरों के लिए बातों को सह जाना पर आज जो उसपर अत्याचार हो रहे हैं उसके बाद तो उसे अपना रौद्र रूप दिखाना ही था....
                  हाँ ,एक परिप्रेक्ष्य में यह बात सही है,कि आज बॉलीवुड या टी.वी. में जो अंग प्रदर्शन किया जाता है वो मेरी दृष्टि में बिलकुल गलत है क्यूंकि जैसा कि मैंने कहा यह  तो स्त्री जाति की प्रकृति तो नही  है यह एक सभ्य समाज के लक्षण तो नही पर शर्म का सौंदर्य से कोई लेना देना नहीं....क्यूंकि देखिये बात यह है कि खूबसूरती और सुन्दरता दोनों बात अलग अलग हैं वास्तव में सौंदर्य आंतरिक होता है और खूबसूरती बाहरी !


और रही बात गाँव की स्त्रियों की तो ऐसा नही है कई बार उन्हें भी समाज के खिलाफ जाना पड़ता है ,हां यह शायद इक्का दुक्का साहसी लडकियाँ ही करेंगी पर क्या हम उनके आतंरिक सौंदर्य पर प्रश्न उठाएंगे...नहीं बल्कि मेरी दृष्टि में गलत काम का विरोध करने वाला और गलत काम से शर्म करने वाला ही सबसे बड़ा शर्म और मर्यादा का पालन करने वाला होता है ...और चरित्र और आतंरिक सौंदर्य यह अन्दर से आता है....स्थान विशेष से नहीं ...सही व्यक्ति ,व्यवहार ,परंपरा ,वस्तु,का समर्थन और विपरीत का विरोध बिना किसी शर्म के  ज्यादा सही है बजाए इसके कि शर्म का झूठा लबादा ओढ़े रहना और सहनशीलता का बेबुनियाद अनुसरण करना क्यूंकि यही तो स्त्री का सच्चा सौंदर्य है...ऐसा सदियों से लोगों का मानना है....हाँ यह बात ज़रूर है कि ग्रामीण जनसंख्य में मिटटी की महक है ,ज़मीनी जुडाव है पर स्त्री के मामले में नही,स्त्री के मामले में तो सारा देश ही सिसक रहा है.....तो हम और आप उससे वो पुरानी प्रतिक्रिया की उम्मीद कैसे कर रहे हैं ....सिर्फ कुछ चलचित्रों के पात्रों और चंद शहरी लड़कियों के व्यवहार और रहनसहन से हम यह कैसे कह सकते हैं कि वहां की स्त्रियाँ तथाकथित रूप से बेशर्म या असहनशील  हैं.

'पिंजर'


हिंदी फिल्मों में बहुत कम ही इतने संजीदे मुद्दे पर बात उठाई जाती है पर अमृता प्रीतम के उपन्यास पर 
आधारित इस उम्दा.फिल्म'पिंजर' को देखने के बाद कुछ ऐसा ही आक्रोश मेरे मन में भी उमड़ता 
है............औरत की आबरू के साथ खिलवाड़ माफ़ कीजियेगा,मेरे मित्रों....पर सदैव से पुरुषों के रौब को 
सिद्ध करने के लिए होता है.....और ये खिलवाड़ औरत की आत्मा के साथ 'बलात्कार ' के रूप में होता 
है.....क्यूंकि उस वक़्त पौरुष के मद में चूर होकर वे यह भूल जाते हैं.....कि सती शिव का ही अंश 
हैं.....जितनी तकलीफ कभी भी मर्द को होती है......उतनी ही तकलीफ औरत को भी होती है......तो ऐसा 
करते वक़्त सम-वेदना ही नही रहती कि...खासकर हमारे भारतीय समाज में जहाँ स्त्री की इज्ज़त बहुत 
मायने रखती है.....वहां...पुरुष की एक 'असंयमित और वहशी हरक़त ' उसका सब कुछ खत्म कर देती 
है......जहाँ तक बात कन्याभ्रूण हत्या का है..... आप लोग मातृभूमि.....-a nation without women 
देखिएगा.....देखके दिल दहल जायेगा.....क्यूंकि अब ऐसा ही होने वाला है भारत में.....कुलमिलाकर पुरुष 
और स्त्री दोनों के लिए अत्यंत समस्यात्मक परिस्तिथियाँ बनने वाली हैं.....ताज्जुब कि बात तो ये और भी 
होती है कि बड़े बड़े महानगरों में कन्या भ्रूण परिक्षण केंद्र ज्यादा फलफूल रहे हैं.......शिक्षा और रुतबे का 
मतलब बेटी को मरने से ही है.....तो उससे तो वो आदिवासी भले जिनके यहाँ बेटियों की संख्या प्रति पुरुष 
(मध्यप्रदेश ) अच्छी खासी है.....आशा है हम अपनी शिक्षा के मद में आकर ऐसा नही 
करेंगे........क्यूंकि.....पता नही....सब तो ऐसे नही होते....पर जब मैंने पढ़ा कि आईआईएम के छात्र ने 
अपनी पत्नी को दहेज़ के लिए मार डाला.....तो विचलित हो गयी....लगा ऐसी उच्च शिक्षा....सर्वोत्कृष्ट 
शिक्षा का क्या फायदा....खैर बात निकली है तो दूर तलक जायेगी......इस मुद्दे पर बात की जा सकती 
है.....और एक ख़ास बात आप सब से.....खासकर बन्दों से.....किसी से व्यक्तिगत रूप से नही....अपने 
wall पर लड़कियों या स्त्रियों के बारे में अमर्यादित या असभ्य जानकारी या चित्र न डालें ....क्यूंकि ये मुद्दा 
मजाक के लिए नही हैं......facebook जिससे हम पल पल जुड़े हैं.......उसपर तो कम से कम न 
करें...काफी विस्तृत टिप्पणी हो गयी........:पर विषय ही कुछ ऐसा है रहा नही जाता.....