मंगलवार, 26 जून 2012

छोटी सी बच्ची

इस बार जब वो छोटी सी बच्ची मेरे पास अपनीखरोंच ले कर आएगी
,मैं उसे फूँ फूँ कर नहीं बहलाऊँगा,पनपने दूँगा उसकी टीस को,
इस बार नहीं।
इस बार जब मैं चेहरों पर दर्द लिखा देखूँगा,
नहीं गाऊँगा गीत पीड़ा भुला देने वाले,दर्द को रिसने दूँगा, उतरने दूँगा अंदर गहरे,
इस बार नहीं।

इस बार मैं ना मरहम लगाऊँगा,ना ही उठाऊँगा रुई के फाहे,
और ना ही कहूँगा कि तुम आँखें बंद कर लो,गर्दन उधर कर लो मैं दवा लगाता हूँ,
देखने दूँगा सबको हम सबको खुले नंगे घाव,
इस बार नही।

इस बार जब उलझनें देखूँगा, छटपटाहट देखूँगा,
नहीं दौड़ूगा उलझी डोर लपेटने,उलझने दूँगा जब तक उलझ सके,
इस बार नहीं।

इस बार कर्म का हवाला दे कर नहीं उठाऊँगा औज़ार,
नहीं करूँगा फ़िर से एक नयी शुरूआत,नहीं बनूँगा मिसाल एक कर्मयोगी की,
नहीं आने दूँगा ज़िंदगी को आसानी से पटरी पर,
उतरने दूँगा उसे कीचड़ में, टेढ़े मेढ़े रास्तों पर,
नहीं सूखने दूँगा दीवारों पर लगा खून,हल्का नहीं पड़ने दूँगा उसका रंग,
इस बार नहीं बनने दूँगा उसे इतना लाचार,कि पान की पीक और खून का फ़र्क की खत्म हो जाए,
इस बार नहीं।

इस बार घावों को देखना गौर से,थोड़े लंबे वक्त तक,
कुछ फ़ैसले,और उसके बाद हौसले,कहीं तो शुरूआत करनी ही होगी,इस बार यही तय किया है।

-प्रसून जोशी

शुक्रवार, 22 जून 2012

आज़ाद

आज़ाद ! 


घर वापस आने पर पिछले साल की कुछ यादें ताज़ा हो गयी,खासकर JEE वाली यादें।
और इन्ही यादों के साथ मन की गहराइयों में अपना सिंहासन जमाए हुए बसी है एक खास ग़ज़ल की याद ।
अगर ये ग़ज़ल न होती तो न जाने कैसे मैंने इतनी भीषण परिस्तिथियाँ झेली होती,न जाने कैसे अपने मन को एकाग्र बनाए रखा होता !
मुझे याद है JEE का वो दिन ,मै बैठा था अपनी सीट पे,ORS मिल चुकी थी,और कुछ ही समय में पेपर मिलने वाला था-"JEE का पेपर " !! मेरे संपूर्ण जीवन का शायद सबसे महत्वपूर्ण पेपर मेरे सामने था,शायद आखिरी मौका,अपनी 2 साल की दिन रात की गयी मेहनत का इम्तेहान। गर्मी के दिन,सेंटर पे पंखा खस्ताहाल,दिलो-दिमाग पर "JEE" का असीम दबाव.....हृदयगति राजधानी की स्पीड पर थी और दिमाग बैलगाड़ी से भी धीमे चलने लगा था ।
तभी मेरी नज़र दीवारों पर लगी कुछ तस्वीरो पर पड़ी। और ये क्या !! चंद्रशेखर आजाद!!! वही फौलादी भुजाएँ,वही शेरो सी निगाहें,मूछों पर राजपूतो वाला ताव! क्या उन्हें बिल्कुल भी डर  नहीं लगता था,क्या वो कभी मुश्किल हालात में नहीं फसे थे? अरे वो तो मौत को ठेंगा दिखने वाले शेर थे !
तो क्या उन वीरो का जज्बा,उन वीरो का आत्मसमर्पण आज बेमानी हो गया है ? क्या उनके बलिदान का आज कोई महत्व नहीं राह गया है? बिलकुल नहीं !उन शूरवीरो की आत्मा,उनकी रचनाएँ,उनके हौंसले आज भी हम युवाओं की भुजाओं में लहू का उबाल ला देतीं हैं।
और तभी मेरे मानसपटल में ये ग़ज़ल सदाएं देने लगी.....बिस्मिल की ये कालजीत रचना ....

 सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
 देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है


(ऐ वतन,) करता नहीं क्यूँ दूसरी कुछ बातचीत,
 देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है
 ऐ शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत, मैं तेरे ऊपर निसार,
 अब तेरी हिम्मत का चरचा ग़ैर की महफ़िल में है
 सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है


वक़्त आने पर बता देंगे तुझे, ए आसमान,
 हम अभी से क्या बताएँ क्या हमारे दिल में है
 खेँच कर लाई है सब को क़त्ल होने की उम्मीद,
 आशिकों का आज जमघट कूचा-ए-क़ातिल में है
 सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है


है लिए हथियार दुश्मन ताक में बैठा उधर,
 और हम तैयार हैं सीना लिए अपना इधर.
 ख़ून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्क़िल में है,
 सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है


हाथ, जिन में है जूनून, कटते नही तलवार से,
 सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से.
 और भड़केगा जो शोला सा हमारे दिल में है,
 सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है


हम तो घर से ही थे निकले बाँधकर सर पर कफ़न,
 जाँ हथेली पर लिए लो बढ चले हैं ये कदम
 ज़िंदगी तो अपनी मॆहमाँ मौत की महफ़िल में है,
 सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है


यूँ खड़ा मक़्तल में क़ातिल कह रहा है बार-बार,
 क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है?
 दिल में तूफ़ानों की टोली और नसों में इन्कलाब,
 होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें रोको न आज.
 दूर रह पाए जो हमसे दम कहाँ मंज़िल में है,
 सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

वो जिस्म भी क्या जिस्म है जिसमे न हो ख़ून-ए-जुनून
 क्या लड़े तूफ़ान से जो कश्ती-ए-साहिल में है
 सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
 देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में




शत शत नमन हैं उन शूरवीरों को .....उन्होंने एक ज़िन्दगी देकर अमरत्व प्राप्त कर लिय है,सदियों तक उनका जज्बा,उनकी विचारधारा ,उनका बलिदान किसी न किसी रूप में सामने आता रहेगा, हम सभी को किसी न किसी रूप में प्रभावित करता रहेगा...।
वन्दे मातरम!!