सागर के आस पास
- निशांत कुमार
शाम का समय था. सागर
पर सूरज की किरणें लाल चादर बिछा रही थी. कन्याकुमारी के सनसेट पोइंट पर कुछ लोग सूरज की तरफ टकटकी
लगाये देख रहे थे. सच कहूँ तो आँखों से ज्यादा कैमरे सूरज की तरफ टकटकी
लगाये देख रहे थे. कुछ लोग सूरज की तरफ पीठ करके सूरज के साथ फोटो खींचाने में मशगुल
थे, तो कुछ आंखे बंद करके सूरज का ध्यान कर रहे थे. सागर की लहरें बार बार सामने के
पत्थरों पर टकरा कर लौट रही थी. पत्थरों पर उगे हुए शैवाल एवं
काई लहरों के साथ साथ अपनों को मोड ले रहे थे. कभी कभी कोई केकड़ा भी पत्थरों पर इधर
उधर उछल कूद कर अपनी उपस्थिति को दर्ज करा रहे थे. भिन्न भिन्न रंगों के रेत सागर के
किनारे कहीं उलझे हुए तो कही सुलझे हुए बिखरे पड़े थे. हर एक लहर के बाद ये रेत नये
क्रम के व्यूह का निर्माण कर रहे थे. कुछ बच्चे रेत का महल बनाने एवं बिगाड़ने के खेल में लगे थे. एक गृहणी रेत एवं पत्थरों के बीच सीप एवं शंख की खोज
कर रही थी. सामने दूर खड़ा उसका पति साथ फोटो खिंचवाने के लिए आवाज़ दे रहा था. कुछ विदेशी सैलानी
एक किनारे पड़े नाव पर बैठकर सागर की तरफ देख रहा था. कुछ लोग की आँख सैलानियों के पोशाकों
पर जा टिकी थी. वहीं कुछ की आंखें
पोशाकों को तार तार कर उसके भीतर झाँकने की कोशिश कर रही थी. थोड़ी दूर में ही मछुवारों का एक समूह जाल को ठीक
करने में लगा हुआ था. सामने खड़ा कुत्ता जाल में फंसे छोटे कीड़ों के बाहर आने के इंतज़ार
में निगाहें गडाये खड़ा था.
इन सबके
बीच, सारी बातों से बेखबर सूरज पूरी तन्मयता के साथ डूबता जा रहा था. सूरज
ने सागर के लहरों को जैसे ही छुआ, लोग खड़े हो हो कर फ्लेश
चमकाने लगे, मानो सूरज भी कोई बड़ा
घोटाला कर इस्तीफा देने जा रहा हो. फिलहाल सूरज डूब चुका था.
सूरज के डूबने के साथ साथ तमाम लोग लौटने लगे थे. एक चाय वाला 'चुड चाया1 ' 'हॉट टी' की आवाज़ लगा रहा था.
मनोहर ने चाय वाले को आवाज़ लगाई. " रंड2 टी" और फिर चाय लेकर मनोहर ने अपने मित्र जीतन
को चाय दी.
बिहार के झाझा और लक्खीसराय के
बीच के एक गावं पिपरिया का 'मनहरवा' से स्कुल के रजिस्टर में दर्ज नाम 'मनोहर' से कब तमिलनाडु में आकर 'मनोहरन' हो गया, पता ही नहीं चला. मनोहर उर्फ मनहरवा उर्फ मनोहरन को तमिलनाडु आये
हुए एक सालगुजर चुका है. मुम्बई में झगडे फसाद
का माहोल बनता देख उसने कहीं और किस्मत अजमाने को सोचा. उन्ही दिनों ही उसे
ढाबे पर एक दिन मुरुगन मिला था.
मुरुगन के ही बताये हुए रास्ते पर
चल कर वह एक दिन कन्याकुमारी के किलिपारा गावं में केले एवं नारियल के बागान पर काम
करने चला आया. मुरुगन उस वक्त अरब जाने के लिए कुछ कागज पत्तर के चक्कर में मुंबई
आया था. वेल्डिंग में आई टी आई मुरुगन के लिए अरब में काम का वीजा मिलना सपनों के नए
पंख खुलने के सामान था. तो मनोहर के लिए किलिपारा टूटते सपनों के पहियों में नए टायर
से कम नहीं था. मुरुगन ने उसे अरब से लौटने पर किलिपारा में मिलने का वादा किया
था. खैर मुरुगन तो ना जाने किस 'चिट्टी ना कोई सन्देश वाले देश' में चला गया की उसका
कोई अता-पता भी नहीं है. लेकिन मनोहर सपनों के घिसे हुए टायर में हर दिन हवा भर कर
जिंदगी के सफर में सरपट दौडने की कोशिश जरूर करता. आज फिर इन्ही सपनों के घिसे, पुराने टायर में हवा भरने के मकसद से उसने
जीतन के साथ कन्याकुमारी के सैर की योजना बनाई थी. काफी देर हो चुकी थी,
अब किलिपारा के लिए
सीधे बस तो मिलने से रही तो मनोहर को नागरकोइल
होकर जाना पड़ेगा.
दसवीं कक्षा तक पास की है, मनोहर ने. कॉलेज में
नाम लिखवाने के बाद भी कॉलेज नहीं जा पाया. बाबू जी के अचानक देहांत के बाद घर सम्भालने
की जिम्मेदारी आ गयी. तभी उसे ख्याल आया, आज शाम वाली बस में काफी लोग खड़े है .
बस कंडक्टर लोगों को 'मुन्नाडी पो3, मुन्नाडी पो' कहते हुए सामने वाले
जोड़े के पास जा कर खड़ा हो गया. बस कंडक्टर के हाथ
में एक छोटा सा मशीन है , जिसमें वह २ - ३ बटन दबाने के बाद टिकट निकाल कर लोगों को देता.
जीतन मनोहर से बोल
रहा है " एत्ते बड मशीन ले के टिकट बाटें की कोने जरूरत है, टिकेटवे सीधे काहे
नहीं बांटट है ससुरा"
मनोहर "जीतनवा
तू सदा बूडबके रहभीं, इम्मे टिकटवा के साथ
साथ टेकवो के भी हिसाब हो जात है, चल अच्छा निकाल छ: टका, भाड़ा दिए के है"
“अभी हमर जुगुर खुचरा
नय खे, तूं ही दे दिहि न भडवा”
"हाँ तू तो हमेशा करारी
करारी टेका ले के चले हीं, खुचरा काहे के राखभीं.
लागत है, तू टेका वाला मंत्रवा बढियां से याद राखले हीं
टका ही धर्मम्,
टका ही कर्मम् ,
ना टका तो टकटकाये
नमः"
तभी पीछे बैठे लड़की
की आवाज़ उसे सुनाई दी.
“टू टिकट त्रिवेन्द्रम” कंडक्टर ने जवाब दिया
" अरवती आर रूपा 4"
लड़का "कितने रूपये,
हाव मैनी रुपीज?"
कंडक्टर " फिफ्टी
इल्ये इल्ये5 , सिक्सटी एंड ......." और सोचने लगता है.
तभी लड़की बोलती है
"हिंदी इज आवर नेशनल लंग्वेज, बट हीयर नो वन नोज हिंदी. इट्स मेड मी मैड"
लड़का " राईट नाउ,
हमेँ किसी की हेल्प
की जरुरत है. यहाँ पे भी लोग हिंदी जानते है. यू हेव नॉट नोटिस इन शॉप "
तभी मनोहर ने कहा
"जी छियासठ टका, मेरा मतलब छियासठ रूपये
भाड़ा है " लड़के ने पैसे देकर टिकट ले लिए.
लड़की ने जवाब दिया
"थेंक्यू, जी आप यहीं काम करते है."
"जी, यहीं पर नागरकोइल के
पास, आपलोग क्या घूमने आये थे”
"हाँ, घूमने ही आये थे. वी
आर सॉफ्टवेयर इंजीनियर, त्रिवेंद्रम के टेक्नोपार्क में काम करते हैं."
सॉफ्टवेयर इंजीनियर
से ही मनोहर को याद आया, उस दिन मुरुगन,
जीतनवा और दो चार आदमी
गप कर रहे थे. उसमें एक आदमी बता रहा था. हम मजदूरों की तरह सॉफ्टवेयर इंजीनियर भी
हर जगह काम करते है. आज यहाँ, कल वहाँ. जब जिस कंपनी का मालिक ज्यादा पैसा देता है,
वो उस कंपनी में चले
जाते है. उसका भी भाई तो इंजीनियर बनना चाहता है. लेकिन वह साफ़ कह देगा कोई भी इंजीनियर
बने सॉफ्टवेयर इंजीनियर ना बने. जिसमें हमेशा मजदुर की तरह इधर उधर घूम कर नौकरी करना पड़ता है. इंजीनियर तो
उसने अपने गावं पर देखा था. पुल के ढलाई के दिन इंजीनियर साहब आये तो मुन्ना ठेकेदार
ने मुर्गा कटवाया था. कुछ लोग तो कहते हैं, की स्पेसल बाई जी का
भी इंतजाम था,
इंजीनियर साहब के लिए.
भगवान जाने क्या सच है, क्या झूठ है. यह अलग बात थी की लाखों की लागत से बना वह पुल
दो बरसात भी नहीं देख पाया.
मुन्ना ठेकेदार के
खिलाफ शुरू में जांच हुई थी, बाद में उसे ही फिर पुल बनाने का ठिका दे दिया. और फिर एक दिन
उसने सुना, मुन्ना ठेकेदार का अपहरण हो गया. कुछ लोग कहते थे,
लालखंडीयों ने उसका
अपहरण कराया था, कुछ लोग कहते थे, भूतपूर्व विधायक के गिरोह ने अपहरण कराया
था. कुछ लोग कहते हैं की दोनों ने मिलकर मुन्ना का अपहरण किया था. भगवान जाने का सच
का झूठ था. लेकिन मुन्ना दो चार दिन में ही छूठ कर आ गया था. और फिर एक बार पुल की
ढलाई हुई. फिर इंजीनियर साहेब के लिए मुर्गा एवं स्पेसल बाई का इंतजाम हुआ था. लेकिन
इस बार पुल एक बरसात भी नहीं देख पाया था. नदी में पानी का स्तर काफी अधिक हो गया था.
पानी की तेज लहर पुल के ऊपर से गुजर रही थी. शाम वाली मिनी बस पुल से गुजर रही थी और
देखते देखते बस सहित पुल नदी में जा गिरी. काफी चीख पुखार मची हुई थी.
उसका अभागा बाप बस
में बचे लोगों को निकालने की कोशिश कर रहा था. दो बार की डूबकी में दो लोगों को उसने
बस से निकाला. तीसरी बार की डूबकी में क्या
हुआ, नदी की तेज धारा में बस ने दुबारा करवट ली और उसका बाप फिर निकल ना सका. और साथ में दफ़न हो गये बहुत सारे उसके वो सपने भी, अब वो उन्हीं सपनों
को अपने भाई के माध्यम से जीना चाहता था. वह अपने भाई को पुल बनाने वाला इंजीनियर ही
बनाएगा, जो मुन्ना जैसे ठेकदारों के लालच में ना आये और जो भी पुल बनवाये वो बहुत दिन तक
चले. लेकिन कल जतिनवा बता रहा था की कहीं तो एक पुल बनाने वाला इंजीनियर को बिजली का झटका दे दे कर इस लिए मार दिया गया, क्यों की वह दो नंबर
का पैसा कमाने के लिए नेता एवं ठेकेदार से साठ
-गांठ करने के लिए तैयार नहीं था. नहीं फिर वह जान को खतरे में डालने
के लिए अपने भाई को पुल बनाने वाला इंजीनियर के बजाय सॉफ्टवेयर इंजीनियर ही बनाएगा.
अभी तो उसका भाई दसवीं कक्षा में पढता है.
अगले साल वह उसका नामाकंन
पटना साईंस कोलेज में कराएगा. लेकिन इतना पढाई के
खर्चे के लिए वह इतना कहाँ कमा सकेगा. नहीं यदि भाई के पढाई के लिए जमीन भी बेचना पडा,
तो भी वह उसे सॉफ्टवेयर
इंजीनियर ही बना कर ही रहेगा. लेकिन यह सॉफ्टवेयर इंजीनियर आखिर काम क्या करते है. उसने सामने वाले लड़के से पूछा. पहली बार इयर पलग लगाये लड़के ने ध्यान ही नहीं दिया,
दूसरी बार पूछने पर
उसने बताया
“सॉफ्टवेयर इंजीनियर कंप्यूटर पर काम करता है. ऐसा कहें की वह
कंप्यूटर पर प्रोग्राम लिखता है"
कंप्यूटर के बारे में मनोहर ने भी सुन रखा है. कई
दुकानों एवं ऑफिस पर उसने कंप्यूटर देखा भी था. लेकिन कंप्यूटर पर प्रोग्राम की बात
उसे समझ में नहीं आया.
उसने दुबारा पूछा
" भाई साहब, प्रोग्राम माने तो कार्यक्रम होता है. तो कम्पूटर में कैसा कार्यक्रम
लिखा जाता है"
लड़के ने लड़की की तरफ
मुस्कुराते हुए कहा " व्हाट ए स्टुपिड क्वेशचन !" फिर बोला प्रोग्राम माने
कार्यक्रम नहीं समझों की हमलोग कंप्यूटर का दिमाग लिखते हैं. जिससे कंप्यूटर पर कोई
हिसाब किताब होता है.
तभी लड़की ने लड़के को देखते हुए शरारत से कहा
"ओह तो यू आर राइटिंग माइंड ऑफ कंप्यूटर. ओपरेटिंग सिस्टम के
लिए प्रोग्राम लिखते हो क्या?. कहो की डाटा एंट्री करते हो कंप्यूटर पर. डिग्री हठोडा चलाने
वाले इंजीनियरिंग में ली है, और बन गये हो सॉफ्टवेयर इंजीनियर."
"फर्क क्या पड़ता है,
एक मेकेनिकल इंजीनियर
से ज्यादा सॉफ्टवेयर में कमा रहा हूँ, और तेरी जैसी खूबसूरत लड़की भी पार्टनर मिली है."
अब तक मनोहर को कुछ
कुछ समझ में आ चुका है, की सॉफ्टवेयर इंजीनियर कंप्यूटर का दिमाग लिखता है
और बस भी नागरकोइल के बड़ासेरी बस स्टैंड में पहुँच चुकी है. अब
किलिपारा जाने के लिए उसे यहाँ से एक किलोमीटर दूर अन्ना बस स्टैंड से किलिपारा के
लिए दूसरी बस मिलेगी. बडासेरी से रास्ते में जाते हुए उसे जीतन सी डी की दुकान देखकर
मनोहर से कहता है
"
अबे मनोहरवा ,
जखने मुंबई में रहल जाला, होटलवा के काम फुराई के बाद सी डी लगा के सिनेमा देखल जाला. गरम
मसाला देखले बहुत दिन हो गईला. अब तो साला
हमन सब सन्यासी बन गईल."
“सन्यासी के बात ना
करों, आज कल कईयों बाबा लोग के भी गरम मसाला सिनेमा बाजार में बिकेला."
"लेकिन किलिपारा में
अपुन जुगुर जब टी वी ये नहीं खे. तब देखाबों कहाँ. सिनेमवा जब तमिल में
रही, तो बुझलों में कैसे
आई.”
“तूहू, अजीब बात कर त. वोहो सिनेमा देखे बास्ते भाषा
के जरूरत पड़ी.”
"दुकनियाँ में जा कर
मान्गेबों कोने नाम से. हिंदी उ बुझेबे ना करी, तमिल में गरम मसाला
सी डी के का कहल जाला बुझते ना बाड़ा"
"तब चल, चलल जाई. मुरुगन के
कहेबे व्यवस्था करे के. लेकिन उ अरब में वेल्डिंग करत करत हेरा गईल बा. जब आई तब कहब "
थोरी दूर जाने के बाद
मनोहर को पेरूमाल टाकीज के सामने रोबोट फिल्म
का पोस्टर दिखाई दिया
“अरे इ त अपन यहाँ के
हेरोइन लागे ला, जीतनवा"
"अबे इ ऐशवरया राय है,
तोहार फेवरेट हीरोइन"
"
देखों हमार तो ऐशवरया
राय कह:, मधुरी दीक्षित कह: सब फेवरेट हीरोइन बा " मनोहर ने
कहा.
"तब गरम मसाला सिनेमा
के बारे में का विचार बा” जीतन ने पूछा
"जीतनवा तू ना मानब,
चल जल्दी चल बस पकडे
के है की नाहीं” मनोहर ने कहा.
बस नागरकोइल को छोड़
कर किलिपारा के लिए चल पड़ी है. हवा धीरे धीरे चल रही है. आगे की सीटों पर बैठी हुई महिलाओं के बेला के गजरे
की खुशबू हवा के झोंके के साथ पुरे बस में
फ़ैल रही है. रात के समय बस की खिडकी से चाँद को भागते हुए देखा जा सकता है. मनोहर ने जीतन को भागते
हुए चाँद के तरफ इशारा करके दिखाया.
“अपनों घरे गावं में
यही चाँद होई, यहों अतने खूबसूरत बा, बुझली जीतनवा”
तभी पीछे से एक आदमी ने कहा "हिंदी"
"हाँ हिंदी, आपको भी हिंदी पता"
"मालूम है, थोरा थोरा मालूम. पहले
बोम्बे में काम करता. वहीं पर थोरा थोरा सिखा. वहां दंगा फसाद शुरू हुआ तो अरब चला
गया. कल ही लौटा"
एक तालाब में चाँद
का प्रतिबिम्ब चांदी सा झलक रहा है. तभी कुछ हलचल हुई और चाँद का प्रतिबिम्ब हजारों
भागों में विभक्त होकर कभी फिर से पूरा चाँद बनने की कोशिश करता तो कभी कभी हजारों छोटे चाँद से
बनी तश्तरी बना देता.
"हमरा भी एक दोस्त
मुरुगन अरब में काम करता है. बहुत दिन से उसका कोई पता नहीं. आपको उसके बारे में मालूम"
"अरब में किस
मुल्क में काम करता, मैं तो मिस्र में काम करता. वहाँ लड़ाई
शुरू हो गया. किसी तरह जान बचा कर भागा "
"नहीं मुल्क तो नहीं
पता" मुरुगन ने उत्तर दिया.
तभी बादल का एक टुकड़ा
आया, उसने चाँद को अपने आगोश में ले लिया.
1गरम चाय, 2
दो , 3 आगे चलो, 4 बारसठ रुपए,
5 नहीं नहीं ( ना ना )
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